बिरखांत – 188 : बुरा आदमी
जब से यथार्थ बोलने और गिच खोलने की बीमारी लगी तब से मैं उनके लिए एक बुरा आदमी बन गया जो स्वच्छंद होकर भटक चुके थे, बिगडैल बन चुके थे, समाज- देश को भूल चुके थे | इस तरह के मेरे बैरियों की सूची बहुत लम्बी हो गई जिनकी आखों में मैं चुभने लगा | ये वे लोग हैं जिनके लिए मैं बुरा हूं परन्तु वे मेरे लिए बुरे नहीं हैं सिर्फ सत्य को समझने में झिझकते हैं |
तांत्रिक, ज्योतिषी, अन्धविश्वास के पोषक – शास्त्री; पंडित; गुरु; ज्ञानी; बाबा, निठ्ठले (अकर्मण्य ) सरकारी वेतनभोगी, शराबी, नशेड़ी, दास-डंगरिये, स्टाफ रूम में बैठे रहने वाले एवं विद्यार्थियों से गुटका- बीडी -शराब मंगाने वाले गुरुजन, बिगडैल विद्यार्थी, भ्रष्ट कर्मचारी, यात्री बसों के अनुशासनहीन चालक- परिचालक, भ्रष्ट- अकर्मण्य पुलिस वाले, भाटगिरी करनेवाले कवि, बिके हुए चैनल –पत्रकार –लेखक, बदन उघाडू यौवनाएं, चूल्हे- चौके और झाडू- पोछे तक ही सिमित रहने वाली गृहणियां जलस्रोतों में विर्सजन के पक्षधर, नदी और मूर्तियों में दूध बहाने वाले, मंदिरों में शराब चढाने वाले, राहू-केतू –भूत-मसाण के नाम से लोगों को डराने वाले, वास्तु का भ्रम दिखाने वाले, नीबू-मिर्च लटकाने वाले, कन्याभ्रूण हत्यारे अल्ट्रासाउंड मशीन वाले, कन्या को परायाधन कहने वाले, संस्थाओं को अकर्मण्य बनाने वाले, सड़क-गली-पार्क में श्वान विचराने वाले,( और भी कई तत्व हैं)|
ये सभी कहीं खुलकर तो कहीं नुक्कड़-कोने पर मुझे एक अवरोधक समझने लगे | अक्सर मूर्तियों पर खूब दूध बहते हुए नाले में जाते हुए देखता हूं । यह दूध किसी कुपोषित के मुंह में जाता तो कुछ पुण्य अवश्य होता | कावड़ यात्री यदि एक पौधे का जलाभिषेक कर उसकी परवरिश करते या क्षेत्र में स्तिथ स्कूल की सफाई करते तो क्या पुण्य नहीं होता ? वृक्षमित्र बन कर प्रचार कम मिलेगा परन्तु अपार पुण्य जरूर मिलेगा |
आज हम उस दौर में गुजर रहे हैं जब हम किसी शंका का सत्य एवं वैज्ञानिक प्रमाण चाहते हैं तो जबाब मिलता है, “ श्रधा पर सवाल मत कर |” यही कारण है कि आज हम शोध में बहुत पीछे हैं | विश्व के प्रथम ५०० (पांच सौ) विश्वविद्यालयों में हमारा नाम नहीं है जबकि देश में सात सौ विश्वविद्यालय और छत्तीस हजार महाविद्यालय हैं जिनमें तीन करोड़ छात्रों का नामांकन है |
दुःख तो तब होता है जब एक पंडित जी अपने जजमान से कहते हैं कि पूजा के लिए ‘एक आम की टहनी और एक बेलपत्री की टहनी’ जरूर लाना | काश ! वे जजमान से एक आम और एक बेल का पौधा रोपित कर उसकी परवरिश के लिए भी कहते | इनका भी मैं बुरा बन गया | बुरा आदमी हूं ना | कुछ अच्छे के लिए बुरा बन भी गए तो यह बुरा नहीं है | विवेकानंद जी कह गए, “ पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार लिया जाता है | मैं आशावान हूं | अगली बिरखांत में कुछ और ...
पूरन चन्द्र काण्डपाल
09.12. 2017
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