Sunday 3 December 2017

3 Dec 1984 : भोपाल गैस कांड

खरी खरी - 135 : 3 दिसम्बर 1984 की वह कातिल रात

     3 दिसम्बर 1984 की आधी रात को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के यूनियन कार्बाइड के कारखाने से मिक (मिथाइल आइसो साइनाइट ) नाम की एक ऐसी जहरीली जान लेवा गैस का रिसाव हुआ जिसने अपने - अपने घरों में सोए हुए हजारों लोगों को एक झटके में मौत के हवाले कर दिया । जीवित बचे जो भी लोग इस गैस के संपर्क में आये वे लाइलाज बीमारियों के शिकार होकर आज भी मर-मर कर जी रहे हैं ।सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस दुर्घटना से 8000 से अधिक लोग मारे गए जिसमें 2260 लोग तो उसी समय मर गए और पांच लाख अठावन हजार से अधिक लोग घायल और पूर्ण विकलांग हो गए ।

      इस त्रासदी को हुए 33 वर्ष हो गए हैं । पीड़ित परिवारों को आज तक मुआवजे के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है । कई लोग आज भी स्वास्थ्य संबंधी अनेकों परेशानियां झेल रहे हैं । औद्योगिक इकाइयों की जबाबदेही आज भी स्पष्ट नहीं है । देश की सरकारें इस मुद्दे पर ढुलमुल रवैया अपनाए हुए हैं । भविष्य में इस तरह की दुर्घटनाओं को कैसे रोका जाए इस पर स्पष्ट नीति जनहित में जारी करनी चाहिए ।

     आज सबसे बड़ी समस्या भोपाल त्रासदी कारखाने के उस जहरीले मलवे ने उत्पन्न कर रखी है जो आज भी उस स्थान पर खुले में पड़ा है । इस मलवे में बहुत ही खतरनाक रसायन हैं जो स्थानीय जमीन और भूजल पर दुष्प्रभाव डाल रहे हैं । इस मलबे को हटाने के लिए कई बार न्यायालय ने भी आदेश दिए परन्तु क्रियान्वयन नहीं हुआ । विगत 15 वर्ष से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी कई आश्वासनों के बाद इस जहर के ढेर से भोपाल को निजात नहीं दिला पाए ।

    विश्व में औद्योगिकरण की त्रासदी की यह एक बहुत ही डरावनी दुर्घटना है । उस रात के भयावह दृश्य कोई भुला नहीं सकता । आज भी कई लोगों की विकलांगता उस डरावनी रात का स्मरण करा देती है । सभी पीड़ितों की लंबित पड़ी मांग पर सरकार ने शीघ्र ध्यान देते हुए उस जहरीले मलवे को उस स्थान से तुरंत हटाना चाहिए ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
03.12.2017

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