Wednesday 6 December 2017

6 Dec 1992 25 varsh :6 दिसम्बर 1992 के 25 वर्ष

खरी खरी - 137 :  25 वर्ष पहले 6 दिसंबर 1992 को जो हुआ

     एक लम्बे घटनाक्रम को सूक्ष्म रूप देने का प्रयास करते हुए बताना चाहूंगा कि 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में एक विवादास्पद इमारत (बाबरी मस्जिद) को एक अनियंत्रित भीड़ (भीड़ में कौन लोग थे यह सब जानते हैं, बताने की आवश्यकता नहीं है ।) ने जमीदोज कर दिया । तब उ.प्र. के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह थे और देश के प्रधानमंत्री पी वी नरसिंग राव थे । तब इस विवादास्पद इमारत का केस न्यायालय में लंबित था । इस घटना के बाद से देश में सैकड़ों बेकसूर लोग मारे गए हैं , देश की धर्मनिर्पेक्षता पर आंच आई और देश के  सामाजिक सौहार्द पर भी चोट पहुंची है ।

     इस इमारत के जमीदोज होने के बाद जस्टिस लिब्राहन आयोग को इस विध्वंश की जांच सौंपी गई । आयोग ने कुल 399 बैठक आयोजित करने के बाद 16 वर्ष में 1029 पृष्ठ की रिपोर्ट 30 जून 2009 को सरकार को सौंपी जिसमें 68 लोगों को इस कांड के लिए जिम्मेदार ठहराया गया । इस आयोग पर आठ करोड़ रुपये खर्च हुए बताए जाते हैं ।

     कालांतर में जब  इलाहाबाद उच्च न्यायालय का विवादित भूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का फैसला आया तो इस फैसले को तीनों पक्षकारों ने नहीं माना और केस पक्षकारों की अपील पर सर्वोच्च न्यायालय चला गया । सर्वोच्च न्यायालय ने सुझाव दिया कि इस मसले को आपसी बातचीत से सुलझा लो जो पक्षकारों की आपसी तनातनी से आजतक  संभव नहीं हो सका ।

     इन 25 वर्षों में राजनैतिक दलों ने अपनी- अपनी रोटियां सेकी । इस मुद्दे पर कई चुनाव जीते -हारे गए, सरकारें बदलीं परन्तु मुद्दा सुलटने के बजाय उलझते गया । अब सबकुछ सर्वोच्च न्यायालय के न्याय पर है जिसे सभी पक्षकार मनाने को तैयार हैं । 

     इस सर्वविदित कहानी  के घटनाक्रम का पुनरावलोकन करें तो हम फिर उसी अदालत की शरण में पहुंचते हैं जहां केस इमारत गिराए जाने से पहले था । यहां प्रश्न उठता है कि जब मुकदमा न्यायालय में था तो वह विध्वंश क्यों किया गया जिससे देश के जन- धन की हानि हुई और सामाजिक सौहार्द सहित संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता पर आंच आई ? अब पुनः वही न्यायालय फैसला देगा जहाँ केस 6 दिसम्बर 1992 को लंबित था । हमें उम्मीद करनी चाहिए कि सभी पक्ष फैसले का सम्मान करें और देश की धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक सौहार्द पर आंच आने वाली कोई बात न करें ।

    हमारे संविधान में लिखा है कि हमने प्रभुतासम्पन्न, धर्मनिरपेक्ष, प्रजातांत्रिक तंत्र अपनाया है । प्रजातांत्रिक देश में जहां सभी राजनैतिक दलों ने अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए वहीं हम देख रहे हैं कि वोट बैंक के खातिर यह सब भुला दिया जाता है, किनारे कर दिया जाता है जो अत्यंत चिंतनीय है । अब 'न्यायालय शरणम गच्छामी' पर सब सहमत हैं । संयम से प्रतीक्षा करें कि श्रीराम मंदिर -बाबरी मस्जिद आस्था के विवाद पर न्याय का क्या दृष्टिकोण आता है ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
07.12. 2017

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