मीठी मीठी - 59 : सामाजिकता के संस्कार
प्रस्तुत चित्र से मुझे इन चार बच्चों पर कुछ शब्द लिखने की प्रेरणा मिली । मुझे अक्सर कुछ मित्र कई लोगों के बारे में लिखने को कहते हैं । मैं कहता हूं, 'कुछ ऐसे काम करो जिसके बारे में लिखा जाय और कुछ ऐसा लिखा जाय जो अवश्य पढ़ा जाय ।' इन चार बच्चों ने 24 दिसम्बर 2017, रविवार को गढ़वाल भवन नई दिल्ली में स्वेच्छा से पुस्तक काउंटर संभालने की जिम्मेदारी ली जहां इन्होंने 7 लेखकों की अलग-अलग प्रकार की 15 पुस्तकों को बेचने का बीड़ा उठाया ।
ये चारों एक टेबल लगाकर उस स्थान पर बैठ गए जहां अंदर अलखनंदा हाल में कुमाउनी-गढ़वाली कवि सम्मेलन चल रहा था । लगातार तीन घंटे इन्होंने सेवा दी और कुमाउनी- गढवाली भाषा में लिखी गईं करीब 5 दर्जन पुस्तकें बेचने में ये सफल हुए और हिसाब भी टनाटन रखा । इनके चेहरों पर अंत तक कोई शिकन नहीं थी ।
ये बच्चे कविमित्र ( जिन्हें प्यार से हम 'संत' जी कहते हैं ) ओमप्रकाश आर्य जी के साथ आये थे । इनके नाम हैं - अमित (B. com I), विजय (B. Tech II), अजय ( XI) और समर (6th) । आजकल पहले तो बच्चे कवि -सम्मेलन या विचारगोष्ठी में जाते नहीं हैं और यदि आ भी गए तो उनसे किसी कार्य की उम्मीद नहीं की जा सकती, वे कुछ काम करने की बात सुनकर नाक- भौं सिकोड़ने लगते हैं । सामाजिक कार्यों में बच्चों ने भागीदारी देनी बंद कर दी है । शायद हम उन्हें सामाजिक संस्कार देने में असफल हो रहे हैं ।
यदि आपके बच्चे समाज से जुड़े हैं तो अवश्य ही आप जैसे माता-पिता वंदनीय हैं । यह गंभीर चिन्तन का विषय है । हम सब अपने लाडलों/लाड़लियों को समाज के कार्य में हाथ बंटाने को प्रेरित करें । इन चारों लाडलों के इस सामाजिक श्रम को मैं नमन करता हूं और इनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.12. 2017
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