मीठी मीठी - 51 : अन्नदाता कृषक
कृषक तेरी ऋणी रहेगी
सकल जगत की मानवता,
यदि न बोता अन्न बीज तू,
क्या मानव कहीं टिक पाता ?
जीवन अपना मिटा के देता
है तू जीवन औरों को,
सुर संत सन्यासी गुरु सम,
है अराध्य तू इस जग को |
धन्य है तेरे पञ्च तत्व को
जिससे रचा है तन तेरा,
नर रूप नारायण है तू
तुझे नमन शत-शत मेरा |
पूरन चन्द्र काण्डपाल
10.12. 2017
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