Wednesday 20 December 2017

Nota : 'नोटा' का टोटा

खरी खरी - 146 :  साड़े पांच लाख 'नोटा', कर गए  टोटा 

     गुजरात-हिमाचल चुनाव आया और चला गया । कोई जीता, कोई हारा और कोई हरा दिया गया । हार-जीत के साथ बधाई का दौर भी निपट गया । बधाई- जश्न में शालीनता हासिये पर फिसल गई । अब जीत-हार के बाद दावे और आंकलन भी चल पड़ा है। इस चुनाव में जनता ने खूब रैलियां देखी और खूब लंबे-चौड़े भाषण भी सुने ।  कुछ लोग अपने हिसाब से अपशब्द भी बोलते गए । बादशाहों, खिलजियों, कौवों, मंदिरों का स्मरण भी हुआ और नीच-असभ्य जैसे शब्द भी हमने सुने ।

     चुनाव में इन शब्दों से किसको नफा-नुकसान हुआ यह तो वे ही लोग जानें परंतु इससे हमारे प्रजातंत्र का अवश्य नुकसान हुआ । हमारे संविधान निर्माताओं ने कभी नहीं सोचा होगा कि भविष्य में हमारे नेता इतने अशिष्ट हो जॉयेंगे कि वे बेरोजगारी, अशिक्षा ,स्वास्थ्य, सड़क, पानी, बिजली और किसान जैसे जनहित के मुद्दों से भटक कर ईरान-तूरान की बात करते हुए सिद्धांत और शिष्टता से दूरी बना लेंगे ।

     इन चुनाओं में घोषणा-पत्र भी देर से आये और उनमें लिखे मुद्दों के अनुसार प्रचार भी नहीं हुआ । पूरे चुनाव प्रचार में राज्यों से बाहर के मुद्दे ही जोर में रहे । इसे स्वस्थ चुनाव परम्परा नहीं कहा जा सकता । कुछ मीडिया चैनलों ने भी निष्पक्षता को किनारे कर दिया साथ ही एक्जिट पोल की भी कलई खुल गई जिनकी निष्पक्षता पर भी पैनल -विशेषज्ञ प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं ।

     आदर्श चुनाव आचार संहिता का भी इस चनाव में खूब उल्लंघन हुआ जिसकी रिपोट आयोग तक भी पहुंची और कुछ को फटकार भी लगी । हमारे नेताओं की भाषा कलुषित हुई, व्यक्तिगत लांछन लगे, भावना-इत्र भी छिड़का गया और कई स्थापित मान- मर्यादाओं की इतिश्री भी हुई ।

     हमारे प्रजातंत्र में आगे भी चुनाव होते रहेंगे । यदि हमारा तंत्र, हमारी सरकार और हमारे नेता संविधान की पवित्रता को समझेंगे तो भविष्य में इस तरह के चुनाव प्रचार से बचेंगे तथा अच्छे कंडीडेट चुनाव में उतार कर मतदाता को 'नोटा' बटन दबाने पर मजबूर नहीं करेंगे । यह प्रश्न भी वायुमंडल में गूंज रहा है कि इन दो राज्यों के चुनाव में साड़े पांच लाख मतदाताओं ने खिन्न होकर 'नोटा' बटन क्यों दबाया ?

पूरन चन्द्र काण्डपाल
20.12. 2017

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