Monday 2 April 2018

Shabas paanch betiyo : शाबाश पाँच बेटियो

खरी खरी - 210 : शाबास पांच बेटियों !!! 

    शिक्षा के दीप से अंधविश्वास का अंधेरा धीरे -धीरे मिट रहा है । देश के कई स्थानों में बेटियों को शव पर हाथ तक नहीं लगाने देते । मृत शरीर को भूत-प्रेत बता कर स्त्री वर्ग को डराया जाता है चाहे वह बेटी हो या बहू । उन्हें किसी परिजन के दाह संस्कार में शामिल होने से भी वंचित किया जाता है । 

     कुछ दिन पहले छत्तीसगढ़ के जिला कोंडागाँव के संगवारपरा गांव में एक व्यक्ति की मृत्यु हुई जिसकी पांच बेटियां थी । सबसे बड़ी लड़की 11वीं और सबसे छोटी लड़की 6ठीं में पढ़ रही है । इन बेटियों की मां की मृत्यु तीन वर्ष पहले हो गई थी । परिवार में कोई बेटा नहीं होने से गांव वाले बिरादरी में कुछ लड़कों से इनके पिता की अर्थी पर कंधा देने की मिन्नत करने लगे । पिता की मृत्यु पर बिलखती- रोती इन बेटियों ने कहा कि वे ही अपने पिता को कंधा देंगी और अर्थी को श्मशान तक ले गई तथा लोगों के सहयोग से पिता का दाह संस्कार किया ।  

     उत्तराखंड के अपने परिवेश में भी कुछ ऐसा ही है । यहाँ जिन परिवारों में केवल बेटियां है, ऐसी परिस्थिति आने पर दूसरे लोगों से अंतिम संस्कार करने की गुहार लगाई जाती है । जब हम यह स्वीकार करते हैं कि पुत्र और पुत्री में कोई अंतर नहीं है तो फिर पुत्रियों को अर्थी को कंधा देने और दाह संस्कार करने में प्रोत्साहित किया जाना चाहिए । आज तो बेटियां किसी भी क्षेत्र में बेटियों से कम नहीं हैं फिर माता -पिता की मृत्यु पर कंधा देने और दाह संस्कार करने के लिए दूसरों की तरफ क्यों देखा जाय ?

पूरन चन्द्र काण्डपाल
01.04.2018

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