Tuesday 3 April 2018

Hinsak andolan kyon : हिंसक आंदोलन क्यों ?

खरी खरी - 212 : आंदोलन का अर्थ हिंसा और अराजकता नहीं है ।

     2 अप्रैल 2018 के हिंसक आंदोलन से देश हित में सोचने वाले लोग बहुत आहत हुए हैं । सबसे दुःखदायी है हिंसा । एक दर्जन लोग मारे गए, कई घायल हुए और राष्ट्र की अथाह सम्पति जल गई । आज सवाल यह है कि ऐसा क्यों हुआ और किसके इशारे पर किसने किया ?  सरकारों की सुप्तता और निष्क्रियता से दंगाइयों को यह तांडव करने की छूट मिली । कानून और व्यवस्था राज्य की पुलिस करती है । ऐसा लगा कि देश में अराजक तत्वों को रोकने वाला कोई नहीं है । अहिंसक आंदोलन से भी तो अपनी बात उठाई जा सकती थी । देश किस ओर जा रहा है ?

    02 अप्रैल 2018 का दिन हमारे देश के जन-आंदोलनों के इतिहास में काले अक्षरों में लिखा जाएगा । दलित आंदोलन के नाम से मीडिया में छाए रहे इस आंदोलन में अराजक तत्वों ने बड़े पैमाने पर हिंसा और आगजनी की जिसमें विभिन्न राज्यों में दर्जन भर घरों के चिराग बुझ गए ।  यह तथाकथित 'भारत बंद' बहुत ही दुखद रहा । प्रजातंत्र में सरकार या न्यायालय के किसी फैसले का अहिंसक विरोध करने का अधिकार   सभी नागरिकों को है परन्तु कानून को हाथ में लेकर हिंसा करने और सार्वजनिक संपत्ति को जलाने या तोड़फोड़ करने का अधिकार किसी को भी नहीं है ।

     इस हिंसक आंदोलन का मुख्य कारण शीर्ष अदालत द्वारा 20 मॉर्च 2018 को 1989 के एस सी/एस टी एक्ट के तहत तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगाने और अग्रिम जमानत मंजूर किये जाने का फैसला बताया जा रहा है । दलितों को डर है कि कानून का भय समाप्त होगा तो दलितों पर अत्याचार बढ़ेगा । लेकिन दहेज कानून की तरह इस कानून का भी दुरुपयोग भी होता है । भलेही देर से ही सही 03 अप्रैल 2018 को पुनर्विचार याचिका सरकार द्वारा दायर कर दी गई जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने अपने 20 मार्च के फैसले पर रोक लगाने से मना कर दिया और सभी से अपना पक्ष रखने को कहा है । न्यायालय ने यह भी कहा है कि 20 मार्च 2018 के फैसले से कानून का कोई प्रावधान कमजोर नहीं हुआ है । इस फैसले का मकसद सिर्फ निर्दोष लोगों की स्वतंत्रता की रक्षा करना है । हमारे लोकतंत्र में इस मुद्दे का खूब राजनीतिकरण भी हो रहा है ।

     अराजक हुए इस हिंसक आंदोलन से देश को जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई कैसे होगी ? कानून- व्यवस्था करने वाली सरकारों ने इस अराजकता पर शीघ्र अंकुश क्यों नहीं लगाया ?  इस तरह के  प्रश्न वातावरण में गूंज रहे हैं । आंदोलन के नाम से भारतमाता को जख्म देने वाले अराजकतत्वों को सख्त सजा दी जानी चाहिए । साथ ही सामाजिक न्याय के इस पेचीदा मुद्दे को देशवासियों ने सहानुभूति पूर्वक अहिंसक होकर समझना चाहिए ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
04.04.2018

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