खरी खरी - 223 : रीत- रिवाज क ठ्यकदार
मै -बाबू कि स्याव नि करि
बार दिन के क्वड़ करें रईं,
न्यूतपट बोलचाल न्हैति
फिर लै मुंडन करें रईं,
क्वड़ पांच-सात दिन क लै
है सकूं पर को मानल ?
जै हुणी यौ बात कौला
उई गुरकि बेर आंख ताणल ।
जसिक्ये आठ घंट के ब्या
दिन में आदू घंट में है सकूं,
उसिक्ये बार दिन क पिपव लै
पंछां-सतां दिन है सकूं ,
पर रीत -रिवाज क ठ्यकदार
यौ बदलाव में टांग अड़ाल,
क्ये न क्ये नुक्त लगै बेर
आपणी मन कसि कराल ।
गौं में ब्या-काज लै
बाड़ मुश्किलल निभै रईं,
क्वे कैकि मदद निकरन
भै बेर धूं देखैं रईं,
न्यूति बलै बेर लै खाण हैं
नि ऐ दिन ऐंठी रौनी,
उनार दिलों में हमेशा
अन्यसा क किल घैटिये रौनी ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.04.2018
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