मीठी मीठी -104 : केवल एक ही बच्चा क्यों ?
वर्ष 1962 में एक नारा था 'बस दो या तीन बच्चे, होते हैं घर में अच्छे ।' जनसंख्या नियंत्रण नहीं हुआ और आगे चलकर नारा आया 'हम दो हमारे दो ।' आजकल बिना कोई नारे के नई पीढ़ी बस एक बच्चे के बाद विराम लगाने लगी हैं । मुझे लगता है कि एक बच्चे वाला विचार कई मायने में ठीक नहीं है । सबसे पहले इससे कुछ वर्षों बाद जनसँख्या संतुलन बिगड़ जाएगा । दूसरी बात यह है कि परिवार - समाज से कई रिश्ते लुप्त हो जाएंगे जैसे - भाई, भाबी, चाचा, चाची, मौसी - मौसा, देवर, जेठ, देवरानी, जेठानी, साली, साला आदि । मित्र, सहेली, यार, दोस्त की जगह या अहमियत अलग है । रिश्ते अपनी जगह बहुत महत्वपूर्ण हैं जिनकी जगह भरी नहीं जा सकती ।
स्वभाव से मजबूर मैंने एक बच्चे वाले कई आधुनिक मम्मी- पापा से यह सवाल किया । सभी ने लगभग एक ही उत्तर दिया, "बस एक ही पल - पढ़ जाय तो बहुत अच्छा । एक ही ने जान आफत कर रखी है । अपने बस की बात नहीं दूसरे बच्चे के बारे में सोचने की ।" इनमें कुछ के पास पुत्र था तो कुछ के पास पुत्री । नाना -नानी या दादा -दादी भलेही बिन मांगे सलाह देते हैं पर इनकी सुने कौन ? जनरेसन गैप का ठप्पा भी लगा है उनपर ।
अंत में सौ बातों की एक बात यह है कि एकल संतान के माता-पिता को इस मुद्दे पर जरूर सोचना चाहिए । घर में दो बच्चे होने चाहिए भलेही दोनों बेटी हों या बेटे । अकेला एक बच्चा समाजिकता के अभाव से भी ग्रसित हो जाता है । स्कूल में भलेही उसे साथी मिलते हों परन्तु घर में तो वह इकलौता है । यह डरने की बात नहीं है कि आप दूसरे बच्चे को सुख - सुविधाएं नहीं दे पाएंगे । हां पुत्र की भूख (सन सिंड्रोम ) के खातिर परिवार नहीं बढ़ना चाहिए जैसा कि अभी भी कहीं - कहीं देखने को मिलता । परिवार में दो बच्चे अर्थात 'हम दो हमारे दो' को चरितार्थ रखना चाहिए ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
30.04.2018
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