Thursday 18 February 2021

Ye Bakgede : ये बखेड़े

बिरखांत – 358 : ये बखेड़े क्यों ?

      हम सब जानते हैं कि हमें बखेड़ा उपजाने में देर नहीं लगती | घर में, पड़ोस में, कार्यस्थल में, सड़क पर या बैठे-बैठे सोशल मीडिया में |  कुछ महीने पहले दिल्ली के भागीरथी विहार में चूहेदानी से दूसरे की घर की ओर चूहा छोड़ने पर ऐसा बखेड़ा हुआ कि आपसी गोलीबारी में एक व्यक्ति की मौत हो गयी | कुछ वर्ष पूर्व सशस्त्र सेना चिकित्सा कालेज (AFMC) पूने के इन्टोमोलोजी विभाग में हमें बताया गया कि चूहा किसान का शत्रु है और सांप किसान का मित्र | अगर सांप न होते तो चूहे सभी अन्न नष्ट कर देते क्योंकि  इनकी संख्या बहुत तेजी से बढ़ती है |

      हम सब चूहों द्वारा किये गए नुकसान से परिचित हैं | हम घर के चूहे को पकड़ते हैं और दूसरी जगह छोड़ देते हैं | चूहों से फ़ूड पोइजनिंग, रैट बाईट फीवर और प्लेग जैसी कई बीमारियाँ फैलती हैं | वैज्ञानिकों के अनुसार हमें चूहों को नष्ट कर देना चाहिए | चूहेदानी को पानी की बाल्टी में डुबाना, चूहा मारने का उत्तम तरीका बताया गया है | परन्तु कुछ लोग चूहे को भगवान् की सवारी बताते हैं इसलिए मारने के बजाय दूसरे के घर की ओर डंडा देते हैं | स्वयं सोचें और जो उचित लगे वही अपनाएं | इस बात पर भी बखेड़ा खड़ा हो सकता है और होते रहता है ।

     दूसरा बहुचर्चित बखेड़ा कुत्ते का है | एक व्यक्ति कुत्ता पालता है और परेशानियां पड़ोसियों को झेलनी पड़ती हैं | कुत्ता  रात को भौंकता है, कहीं पर भी शौंच कर देता है | श्वान मालिक किसी की बात नहीं सुनता | रिपोट होने पर पुलिस-अदालत होती है और वर्षों केस लटके रहता है | कुत्ते वाला त्यौरियां चढ़ा कर कुत-डोर हाथ में थामे बड़े रौब से घूमता है | उसे किसी की परवाह नहीं |  उसकी सबसे बोलचाल बंद है | एक दिन जब कुत्ते का मालिक मर जाता है | सभी पड़ोसी उसके कुतप्रेम, कुतत्व और कुतपने को भूल कर उसकी अर्थी में शामिल होते हैं फिर भी उस परिवार को अकल नहीं आती और अंत में अदालत के दंड से ही केस का अंत होता है |

     तीसरा बखेड़ा ‘हा-हा’ का है | एक आदमी प्रतिदिन सुबह चार बजे अपने घर की बालकोनी में जोर-जोर से ‘हा-हा’ करता है अर्थात हंसने का व्यायाम करता है | पड़ोसी उसे मना करते हैं | वह नहीं मानता | केस अदालत में जाता है | अदालत से उसे आदेश मिलता है, “तुम पार्क में जाया करो, घर की बालकोनी या आसपास ‘हा-हा’ नहीं करोगे | तुम्हारी इस हरकत से लोग दुखी हैं |” पड़ोसियों से अकड़ने वाला यह तीसमारखां अदालत से माफी मांगता है और लोगों को उसकी ‘हा-हा’ से मुक्ति मिलती है |

     इसी तरह पड़ोस में कई तरह के वाद्य जैसे ढोल, डीजे, म्यूजिक सिस्टम, हॉर्न, पटाखे, जोर जोर से झगड़ा, बहुमंजिले फ्लेटों में खट-खट, वाहन पार्किंग, जीने या सीढ़ियों की गन्दगी आदि समस्याओं से हम आए दिन जूझते हैं और छोटी सी बात पर बखेड़े खड़े हो जाते हैं | चलो अपने से पूछते हैं, ‘कहीं हम चूहा, कुत्ता, हा-हा, हॉर्न, मुजिक सिस्टम, शराब पार्टी सहित कई अन्य बखेड़ों के कारण तो नहीं हैं ?’

पूरन चन्द्र काण्डपाल
18.02.2021

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