Sunday 21 February 2021

Bhrashtachar ki jad : भ्रष्टाचार की जड़

खरी खरी - 793 : भ्रष्टाचार की जड़

जड़ भ्रष्टाचार की

मजबूत इतनी हो गई,

उखड़ वह सकती नहीं

शक्ति सारी खो गई ।

रेत के पुल बन रहे हैं

नजरें घुमाए वे खड़े,

खा रहे भीतर ही भीतर

राष्ट्र को दीमक बड़े ।

डिग्रियां तो बिक रही हैं

अब सरे बाजार में,

नाव शिक्षितों की डोली

जा रही मजधार में ।

मंतरी से संतरी तक

बिक रहे हैं खुलेआम,

घोटालों के संरक्षक

घूम रहे हैं बेलगाम ।

बैंक खाली करके वो तो

छोड़ गया है देश को,

थोड़े कर्ज में जो दबा था

वो छोड़ रहा है देह को ।

भ्रष्ट लोगों के घरों में

जल रहे घी के दीये,

रोकने वाले थे जो

वे भी उन्हीं में मिल लिए ।

टूट रहा है मनोबल

कर्मठ निष्ठावान का,

चक्रव्यूह घेरे उसे है

भ्रष्ट चोर शैतान का ।

सत्यवादी सद्चरित्र का

मान पहले था जहां,

आज झूठे चोर बेईमान

पूजे जाते हैं वहां ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल

22.02.2021

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