Saturday 6 February 2021

Ye Aakashvani hae : ये आकाशवाणी है

खरी खरी - 785 : ये आकाशवाणी है, अब आप...

     नई पीढ़ी को शायद पता नहीं होगा कि पहले रेडियो/ट्रांजिस्टर का भी लाइसेंस होता था जिसका वार्षिक शुल्क ₹ 10/- या ₹ 15/- होता था । मैंने वर्ष 1973 में जोधपुर से पहली बार एक दो बैंड का ट्रांजिस्टर खरीदा जिसका नाम था मरफी मुन्ना । याद नहीं है कितने का खरीदा होगा। 1975 में लाइसेंस सरकार ने समाप्त कर दिया । लोग पहले रेडियो खूब सुनते थे । जिसके पास रेडियो/ट्रांजिस्टर होता था उसे जेंटिल मैन समझा जाता था । बारातों में भी लोग अपना अपना ट्रांजिस्टर ले जाते थे और उसका एरियल सीधा करके बारात में बजाने का प्रयास करते परन्तु स्यां स्यां - सूं सूं ही होती थी । स्पष्ट सुनाई नहीं देता था । रेडियो सिलोन ( बिनाका गीत माला- अमीम सयानी) या नजीमाबाद पकड़ने वाला ट्रांजिस्टर कीमती माना जाता था। बारात का मूल्यांकन भी ट्रांजिस्टरों की संख्या से होता था अर्थात अधिक ट्रांजिस्टर माने नामी- गिरामी बरेतिए और संभ्रांत घर की बारात। 

           कई लोगों की तरह मुझे भी रेडियो से समाचार सुनने का चस्का था जो अब भी है । आकाशवाणी की देर तक बजने वाली धुन और "ये आकाशवाणी है, अब आप देवकीनन्दन पांडे से समाचार सुनिए " वाक्य आज भी मेरे स्मरण में है । मेरे पास आज भी एक छोटा सा ट्रांजिस्टर है । आज भी दिन में दो - तीन बार रेडियो से समाचार सुनता हूं । 1971 की 14 दिन की लड़ाई के दौरान युद्ध की खबरें भी ट्रांजिस्टर/रेडियो द्वारा लोगों तक पहुंचती थी ।  रेडियो का भरोसा और विश्वसनीयता बहुत थी जो अब धीरे धीरे घटते जा रही है ।  विश्वसनीयता तभी बरकरार रहेगी जब जो रेडियो से प्रसारित हो वह जमीन पर भी घटित होता दिखाई दे ।

     रेडियो हमेशा ही सत्ता का ही गुण गान करते आया है परन्तु विपक्ष की आवाज भी उसमें थोड़ा बहुत होती थी जो अब विलुप्त होती दिखाई दे रही है । उदाहरण के लिए साल में जब भी बजट पेश होता था तो रेडियो पर 15 मिनट में से 1 - 2 मिनट विपक्ष की टिप्पणियों को भी मिलते थे। इस बार के बजट वाले दिन अर्थात 1 फरवरी 2021 को रेडियो से बजट संबंधी सरकारी विवरण रात्रि समाचारों में था परन्तु विपक्ष की तरफ से एक भी टिप्पणी बजट के बारे में नहीं सुनी ( किसी ने समाचारों में सुनी हो तो अच्छी बात है, कृपया साझा करें ) जबकि समाचार पत्रों में विपक्ष की टिप्पणियों को भी जगह मिली थी। आकाशवाणी/ऑल इंडिया रेडियो को प्रिंट मीडिया की तरह अपना रवैया रखना चाहिए । अंत में इतना ही कहूंगा कि सरकारी रेडियो में सरकारी बातें तो होंगी ही परन्तु विपक्ष को आंशिक जगह भी नहीं मिलेगी तो हमारे प्रजातंत्र का क्या होगा जिसका मूल सिद्धांत पक्ष के साथ विपक्ष का मजबूत होना बहुत आवश्यक है ।  

पूरन चन्द्र कांडपाल


07.02.2021

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