Wednesday 24 February 2021

Vishwas, ativishwas, vishwasghaat : विश्वास, अतिविश्वास, विश्वासघात

बिरखांत - 359 : विश्वास, अतिविश्वास, विश्वासघात

       पीरू और धीरू एक वित्तीय कम्पनी में एक साथ काम करते थे | दोनों अच्छे दोस्त थे | हंसी-मजाक, दिन की चाय-भोजन सब एक साथ | बातों में तू- तड़ाक का घालमेल एवं प्रेम का खुलापन, एकदम लंगोठिया यार जैसे | कंपनी में दोनों रोकड़ विभाग में संयुक्त कस्टोडियन थे अर्थात तिजोरी दोनों की चाबियों से बंद होती और खुलती थी | विभाग बंद होते ही दोनों अपनी- अपनी चाबियों को अपने साथ ले जाते | एक दिन धीरू को किसी रिश्तेदार को देखने अचानक अस्पताल जाना था | उसने सोचा चाबी का गुच्छा कार्यालय में ही रख जाता हूं ताकि सुरक्षित रहे | रोज की तरह दोनों नि मिलकर तिजोरी बंद की | धीरू ने अपना गुच्छा दराज में रखा और दराज की चाबी पीरू को दे दी |

      तिजोरी की दूसरी चाबी पीरू के पास थी ही | पीरू कार्यालय में काम निपटाने के बहाने अक्सर देर तक बैठता था | उस दिन भी वह देर तक बैठा | तभी उसके दिमाग में शैतान पनप गया | कार्यालय बंद करने से पहले उसने दराज से धीरू वाली चाबी निकाली और अपनी तथा धीरू की चाबी से तिजोरी खोली | दूसरा वहां कोई था नहीं | उसने एक हजार वाले (तब एक हजार के नोट प्रचलन में थे) नोटों के पांच पैकेट (पांच लाख रुपए ) निकाले और तिजोरी बंद कर धीरू वाली चाबी ठीक उसी तरह दराज में रख दी जैसे धीरू रख कर गया था तथा दराज भी बंद कर दी | सुबह आते ही धीरू ने पीरू से चाबी ली और रोज की तरह तिजोरी खोली | सौ- पांच सौ के कुछ पैकेट निकाले तथा बिना शेष रोकड़ देखे तिजोरी बंद कर दी |

     करीब आधे घंटे बाद एक ग्राहक ने एक हजार रुपए के नोट मांगे | धीरू ने तिजोरी से नोट निकाले परन्तु नोट कम थे | उसने इधर उधर देखा, पुन: रोकड़ रजिस्टर देखा परन्तु पांच लाख़ रूपया कम था | वह चुपचाप पीरू के पास गया | कहानी बताई |पीरू बोला, “तिजोरी खोले हुए तुझे आधा घंटे से ऊपर हो गया है और अब बता रहा है कि पांच लाख कम हैं | उल्लू बना रहा है | तिजोरी खोलते ही क्यों नहीं बताया तूने ?” धीरू पर काटो तो खून नहीं | उसके पैरों तले जमीन खिसक चुकी थी | वह बहुत ही ईमानदार व्यक्ति था | लोग उसकी ईमानदारी के कायल थे लेकिन आज विश्वासघात हो चुका था | धीरू की मदद के लिए लोग आए और तत्काल रोकड़ पूरा किया | न पुलिस बुलाई और न उच्च अधिकारियों को बताया | नौकरी का सवाल था | धीरू ने पत्नी के गहने बेचे, मकान गिरवी रखा और दो दिन में लोगों के रुपए लौटा दिए | धीरू ने नौकरी बचा ली, जेल जाने से बच गया  परन्तु लोग आज भी पूछते हैं कि जब वह चाबी वहीं छोड़ गया था तो उसने तिजोरी खोलते ही रोकड़ की जांच क्यों नहीं की ? एक सच्ची घटना पर आधारित इस कहानी के बारे में आपको क्या लगता है ? हो सके तो अपने विचार व्यक्त करें ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
25 02 2021

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