Wednesday 10 February 2021

Pahale toliye fir boliye : पहले तोलिए फिर बोलिए

बिरखांत -357 : तोलिए फिर बोलिए 


 

      विगत कुछ वर्ष पहले एक स्वामी जी की टेलिविजन पर दो विवादास्पद टिप्पणियां देखने- सुनने को मिली जिन्हें पूरे देश में समाचार पत्रों ने भी जगह दी | इन दोनों टिप्पणियों पर लोगों में रोष देखने में आया | स्वामी जी ने पहली टिप्पणी में महिलाओं द्वारा महाराष्ट्र के शनि शिगनापुर मंदिर में प्रवेश को यह कहते हुए गलत बताया कि “शनि पूजा करने से महिलाओं की मुसीबतें बढ़ जायेंगी और उनके खिलाफ  बलात्कार जैसे अपराध बढ़ जायेंगे |” स्वामी जी ने दूसरी टिप्पणी में शिरडी के साईबाबा की पूजा को गलत बताते हुए कहा, “साई की पूजा करना अनुचित है जबकि वास्तविक भगवानों की अनदेखी की जा रही है और इसी कारण महाराष्ट्र में सूखा पड़ रहा है |”

 

     स्वामी जी की दोनों टिप्पणियों से देश की इंद्रधनुषी संस्कृति में ढले हुए लोग खफा हो गए | महिलाओं ने इसे ‘घटिया और अपमानजनक’ कहा  और स्वामी जी से माफी माँगने की बात तक कह दी  | कुछ महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने इसे संविधान का अपमान बताते हुए प्रदर्शन करने की बात भी कही | आज भी लोग प्रश्न कर रहे हैं कि उत्तराखंड में हर साल की मौसमी त्रासदी और 2004 में दक्षिण भारत के सुनामी या 2013 की केदारनाथ आपदा अथवा 7 फरवरी 2021 के क्या कारण थे जिनमें अपूरणीय जन - धन की क्षति हुई |  

 

         उधर सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी को सर्वोच्च न्यायालय ने मंदिर ट्रस्ट से पूछा है कि संवैधानिक तौर पर यह परंपरा अनुचित है, यह लैंगिक भेदभाव है | मां को मंदिर में जाने से कैसे रोका जा सकता है ? भगवान तो स्त्री –पुरुष में भेदभाव नहीं करते | हमें अंधविश्वास की जंजीरों को तोड़ने में पहल करनी चाहिए । कब तक हम लोगों को अंधविश्वास के लवादे में लपेटकर अपना उल्लू सीधा करते रहेंगे ?  क्या किसी महिला को माउंट ऐवरेस्ट में चढ़ने से रोका जा सकता है ? बचेंद्री पाल देश की पहली महिला हैं जिन्होंने एवरेस्ट के गुंबद पर तिरंगा फहराया ।

 

     हमारा मानना है कि स्त्री को हेय दृष्टि से देखना, उसे कमजोर या अपवित्र मानना यह पुरुष की मानसिक संकीर्णता है | स्त्री सृष्टि की जन्मदाता है, पवित्र है, सहनशील एवं शक्ति की परिचायक है | उससे घृणा करना या उसे अपमानित करने वाला समाज यथार्थ को समझने में भूल कर रहा है और गर्त में जाता है | सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी स्वागत योग्य एवं वन्दनीय है | कोई साई बाबा को माने या कबीर को, राम  को माने या रहीम को, यह श्रद्धा का सवाल है | प्रभू श्रीराम ने तो निषाद, सबरी, जामवंत, सुग्रीव सबको गले लगाया । सामाजिक भेदभाव रामराज्य में तनिक भी नहीं था । यही तो उनकी मर्यादा थी । आज हम तुलसी बाबा की मानस का पाठ करते हैं लेकिन उसकी एक आयत को अपने दिल में नहीं उतारते । इस पर गंभीरता से मंथन होना चाहिए ।  श्रधा या अंधश्रद्धा के अंतर को केवल ज्ञान और तथ्यों द्वारा ही विनम्रता से हम किसी के सामने रख सकते हैं | 

 

पूरन चन्द्र काण्डपाल

11.02.2021

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