Monday 11 May 2020

Om jai jagdish hare : ओम जय जगदीश हरे

(आज लौकडाउन का 49/54वां  दिन है । घर में रहिए, बाहर मत निकलिए । इस दौर में विश्व में कोरोना संक्रमित/मृतक संख्या 42.54+ लाख/2.87+ लाख और देश में 70 +हजार /2.2+ हजार हो गई है । देेश में 19 + हजार रोगी ठीक भी हो गए हैं । कर्मवीरों का मनोबल बढ़ाइए । भागेगा कोरोना, जीतेगा भारत । आज ' ओम जय जगदीश हरे ' पर चर्चा । )

मीठी मीठी - 455 : ओम जय जगदीश हरे

       हम सब 'ओम जय जगदीश हरे ' आरती को अपने घर के मंदिर या अन्य मंदिरों में अक्सर गाते हैं भले ही इसका अर्थ नहीं समझते या इसके काथनानुसार नहीं चलते । इस आरती का लेखक कौन है ? यह प्रश्न हम नहीं पूछते । हम तो लोकप्रिय गीत 'ये मेरे वतन के लोगो ' भी गाते हैं परन्तु इसके गीतकार को भी नहीं जानते और न जानने की कोशिश करते हैं ।

     आरती के अंत में कुछ लोगों ने अपना नाम भी जोड़ दिया -  कहत ' फलाना..... स्वामी ' जबकि वे इसके लेखक नहीं हैं । कुंडली विधा में या पदों में में लेखक अपना नाम 5वें चरण /अंतिम पद में जोड़ता है । इस आरती के लेखक दिवंगत पंडित श्रृद्धा राम फिल्लौरी जी को बताया जाता है । वे फिल्लौर (लुधियाना के निकट, पंजाब) के रहने वाले थे । उनका जन्म 1837 में हुआ । वे एक विद्वान व्यक्ति थे । लगभग 1870 के दौरान उन्होंने इस आरती को लिखा और उन्होंने ही इसको संगीत - स्वर  वद्ध भी किया । वे इसे भागवत कथा के बाद गाते थे । (संदर्भ साभार राहुल सिन्हा ) ।

        उनके खंडहर मकान को कुछ महिलाओं ने 1996 में ठीक किया । अब वहां प्रतिदिन आरती होती है । इस आरती को फिल्म 'पूरब - पश्चिम ' में मनोज कुमार जी ने स्थान दिया और अंत में एक पंक्ति ' तेरा तुझको... क्या लागे मेरा ' जोड़ते हुए घर - घर तक पहुंचाया ।

      'ये मेरे वतन के' गीत के लेखक पंडित प्रदीप (कवि ) हैं जबकि लता जी ने इसे स्वर दिया । हमें उन लेखकों का नाम जानने की जिज्ञासा होनी चाहिए जिनके रचना का हम आनंद लेते । लोग इन अनाम लेखकों की रचनाओं से आजकल व्यवसाय करने लगे हैं । हमारे कुछ गायक भी मंच से गीत गाने से पहले उस लेखक का नाम नहीं लेते जिसका लिखा हुआ गीत गाकर वे पारिश्रमिक लेते हैं । यदि उनका नाम लेंगे तो उस गाने वाले को भी सम्मान मिलेगा । अतः 'फिल्लौरी जी को याद रखिए और आरती के शब्दों का मंथन करते हुए उन पर चलने का प्रयास करिए । अन्यथा हम 'मात - पिता तुम मेरे ... कहते तो जरूर हैं परन्तु स्थिति अरबी के पत्ते की तरह रहती है जिस पर जल का कोई असर नहीं होता । फिल्लौरी जी की जै । आशा के दीप से प्रकाश करते हुए कोरोना रूपी निराशा के अन्धकार को हम जरूर मिटाएंगे ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
12.05.2020

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