खरी खरी - 627 : मजबूर मजदूर
आज लौकडाउन का 47/54वां दिन है । घर में रहिए, बाहर मत निकलिए । इस दौर में विश्व में कोरोना संक्रमित/मृतक संख्या 41+ लाख/2.8+ लाख और देश में 61 +हजार /2+ हजार हो गई है । देेश में 18 + हजार रोगी ठीक भी हो गए हैं । कर्मवीरों का मनोबल बढ़ाइए । भागेगा कोरोना, जीतेगा भारत । हमारे देश में असंगठित क्षेत्र के किस राज्य के किस राज्य में कितने मजदूर हैं यह स्पष्ट नहीं था । मजदूरों की निराशा और अस्पष्टता के कारण वे सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने गांवों की यात्रा पैदल ही निकल पड़े जो ठीक नहीं था । इस बीच एक हादसे में 16 मजदूर रेल से कट कर मर गए । प्रस्तुत है उस दुखद क्षण की चर्चा कविता " मजबूर मजदूर " वीडियो के रूप में ।
कोरोना का दंश पूरा देश झेल रहा था
तीसरे लौकडाउन का दौर चल रहा था
बंद था जिन पटरियों पर, रेल का चलना
मजदूर उन्हीं पर हो मजबूर चल रहा था ।
साथ छोटे बच्चे, संग पत्नी चल रही थी
ऊबड़खाबड़ पटरी तपन से जल रही थी
ये कैसी परीक्षा थी कैसा इम्तहान था
न जाने जिंदगी क्यों उन्हें छल रही थी ।
वीरान था हाईवे, जिस पर चलना मना था
पग पग पुलिस का, वहां पहरा घन था
न बस न रेल, न कोई वाहन कहीं था
चलूं गांव अपने मन सबका बना था ।
न पीने का पानी, न अन्न का दाना था
कंकरीट पटरी पर, दूर बहुत जाना था
जब देह लड़खड़ाई कदम न बढ़ रहे थे
तलुओं में छाले, कठिन पग उठाना था ।
यह पैदल पथ नहीं था, फिर भी वे चले थे
ज्योंहि बैठे पटरी पर, लगी आंख थके थे
गुजरी मालगाड़ी अचानक उस जगह से
सोलह मजदूर तत्काल, शव बन गए थे ।
कहीं झेली आंसुगैस, कहीं डंडे पड़े थे
थे वे बेघर बेधंधे, बिलख चल पड़े थे
न मिली जीतेजी ट्रेन, जिन्हें घर जाने को
कटे हुए शव उनके, ट्रेन से घर गए थे ।
कसूर था किसका, जो बेमौत मर गए वो
चुनाव में जो आए थे, नेता कहां गए वो ?
किसे सुनाते शिकवा, न कोई सुनने वाला
दिया था वोट जिसको, कहां छिप गए वो ?
पूरन चन्द्र कांडपाल
10.05.2020
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