Thursday 11 July 2019

Mitr dekhi jagar : मित्र देखी जागर

खरी खरी - 460 : एक मित्र ने देखी जागर ( साभार श्री के एस उजराडी जी )


      11 जुलाई 2019 के लेख ( बिरखात - 272 ) के संदर्भ में उजराडी जी का संस्मरण आज यहां साभार प्रस्तुत है । उजराडी जी एक सामाजिक चिंतक हैं ।

 " विधिवत पूजा की केर कहां से बिगड़ी ?"

    " मुंबई से पूरा कुनबा कुल देवता की पूजा करने गाँव आया हुआ था । पूरे परिवार का आज दिन में उपवास था । शाम को दोसेरी ( दो फसलों का अनाज की भेंट ) काटनी थी । गांव में रहने वाले परिवार के डंगरियों ने कहा कि वे नदी स्नान करके आएंगे । उपवास पर रहेंगे। केवल फलाहार लेंगे । काम विधिवत होना चाहिए । कोई शार्टकट नहीं । शाम को वे जगरिए व थकुल बजाने वाले को भी लेते हुए आएंगे । घर वालों ने डंगरियों को कुछ रुपये देकर रवाना कर दिया ।

       शाम को सभी गुठ्यार ( घर के आंगन के ऊपर बैठने का स्थान ) में बैठकर द्यप्ती मुंडियों का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे । आखिरकार वे आए । सभी की इंतजार की घड़ियाँ खत्म । लेकिन यह क्या, वे अचानक नाचने लगे....! मुंबई से आया परिवार सकते में आ गया । लाचार होकर बोले, "परमेश्वर लाचार हैं । क्या केर ( रीति ) बिगड़ी है ?" डंगरिये खड़े होकर नाचने लगे.... और भक्तों के ऊपर उखाव (उल्टी) कर दिए...! अजीब टिंचर की सी खट्टी बदबू से वातावरण दूषित हो गया । जगरिया व थकुल बजाने वाला भी खड़े होने की हालत में नहीं थे । बमुश्किल सभी को रघोड़ ( घसीट ) कर गोठ ले गए । 

   समझ नहीं आ रहा था कि विधिवत पूजा की केर कहाँ से बिगड़ी ?"

       इस संस्मरण से स्पष्ट होता है कि जागर से पहले सभी डांगरिए - जगरिए और उनकी मंडली शराब में डूब चुके थे । हम उन्हें देव अवतारी समझ कर उनकी आरती करते हुए उनकी अंगुली पर नाचते हैं । हमारे बुद्धि - विवेक के ऊपर हमारी भीरू प्रवृति ग्रहण लगा देती है । हम इन शराबियों के आगे फिर भी नतमस्तक होते हैं परन्तु अंदर ही अंदर मसमसाते जरूर है । यदि किसी अन्य मित्र के भी इसी तरह के संस्मरण हों तो भेजिए, हम सबके साथ साझा करने का प्रयास करेंगे । धन्यवाद । उजराडी जी का आभार ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
12.07.2019

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