खरी खरी - 464 : ' बैसि पर प्रतिक्रिया
" बैसि " बिरखांत 272 और 273 " पर सामाजिक चिंतक उजाराडी जी के उदगार - "हमारे उत्तराखण्ड के पिछड़ने का कारण हमारी धर्मभीरुता भी है । हम सदैव अज्ञात भय से ग्रस्त रहते हैं । बचपन से बच्चों को सुनी सुनाई तिलस्मी झूठी कहानियाँ सुनाई जाती हैं । छव, झपेटा, कुणी बुढयि, मसाण, भिसौण, भूत का कल्पित भय दिखाया जाता है । हम तुम्हड़े में अनाज रखते हैं, गाय भैंस मुश्किल से एक या डेढ़ लीटर दूध देती हैं फिर भी हाक- नजर लगने का भय रहता है । हमारे बच्चों के नाम झोली, पनियां, मुसिया, गोठिया, गोभरिया, झुपुली, जोगुली इत्यादि इत्यादि होते हैं । भय बराबर बना रहता है कहीं नजर न लग जाए। जो हम नहीं कह पाते डंगरिया रूपी देवी - देवताओं के मार्फत कह देते हैं । हरिशंकर परसाई अपने व्यंग्य के माध्यम से कहते हैं, "देशभक्ति सीखनी हो तो देवी देवताओं से सीखो । सन 1947 में एक भी देवी देवता पाकिस्तान नहीं गये। तैंतीस करोड़ भी कम पड़ रहे हैं हमारे लिए ।"
सभी मित्रों को अपनी टिप्पणी भेजने के लिए साभार हार्दिक धन्यवाद ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
19.07.3019
No comments:
Post a Comment