Friday 12 July 2019

Ek tamasha jagar : एक तमाशा जागर

खरी खरी - 461: एक तमाशा है यह सब

    11 जुलाई 2019 के लेख ( बिरखांत - 272, उत्तराखंड में ' बैसि ' ) के संदर्भ में मुझे बहुत सी प्रतिक्रिया मिल रही हैं जागर के बारे में । 12 जुलाई को उजराडी जी के शब्दों की चर्चा हुई थी । आज 13 जुलाई 2019 को भिकियासैंण निवासी सोनू रावत जी की प्रतिक्रिया सशब्द यहां उद्धृत है । सोनू जी ने गांव की एक बीमार लड़की के बारे में चर्चा की है जिसे सभी डंगरियों - जगरियों और सयानों ने देवता लग गया कहा और फिर ...(सोनू रावत के शब्द...जैसा उन्होंने देखा...)

     "इंसानियत क्या है दोस्त ?  कोई पता नहीं  ?  जब किसी की पूजा होती है  तो सभी उसका तमासा देखते हैं  और जब दिन रात तमासा बनता है  तो लोग उसके मुखवीर बनते हैं । जब सब कुछ समाप्त हो जाता है तो लोग अपने अपने घरों को चले जाते हैं ।क्या यही इंसानियत है दोस्त ?
कोई पता नहीं   ?

         मैंने गाँव मैं आधी रात तक कई पूजा देखी हैं । एक नहीं दो नहीं दस- बीस बकरी कटते देखी हैं । देर रात तक सबको जागते देखा है । लोगों की फुस्फुसाहट को सुना है । कोई बोलता है गंगा जल और धूप दिखावो, कोई बोलता है बभूति और चावल लावो,
सब के सब देवता पर डालते हैं । कोई बोल रहा दोष है, कोई बोल रहा हँक है, कोई बोल रहा रोष है, कोई बोल रहा है कि सात पीढ़ी की  बुढ़िया है, कोई बोल रहा है अल्प आयु मैं मरे कोई पितर है । क्या यही इंसानियत है दोस्त ? कोई पता नहीं ?"

     "पर यहाँ हर डंगरियों ने इंसान को परेशान किया है । एक बोलता है की सब कुछ ठीक हो जाएगा,  तू मेरी बात मान ले तेरा कौन क्या बिगाड़ पाएगा ? कोई किसी को अहंकारी बता रहा है, कोई किसी को दोषी बता रहा है । कोई बोल रहा है माँ भगवती ने हल चल की है । कोई बोल रहा है ग्वेल को बकरी चढ़ाओ । पर यहाँ तो कुछ और ही हो गया ! जो लड़की नाच रही थी ( रोगी ) वो ज्यों की त्यों परेशान थी । अभी लोगों ने जोर शोर से उसे शांत किया पर कल क्या होगा कोई पता नही ?
इंसानियत क्या है दोस्त ? कोई पता नही ? "

"सोनू रावत उत्तराखण्डी
भिकियासैण, अलमोडा उत्तराखण्ड ।"

     सोनू रावत जी ने अंत में अलग से पुनः लिखा है कि वह बीमार लड़की उसी हालत में थी जैसा उसे आरम्भ में देखा था । हमारे विचार से बेहतर होता उसे अस्पताल ले जाते या किसी स्थानीय डाक्टर को दिखाते । परन्तु वहां उन्हीं लोगों की चलती है जो अंधविश्वास के पोषक हैं । हम मानते हैं कि कई बार रोगी का मनोवैज्ञानिक उपचार करना पड़ता है । यदि वह ठीक न हो तो हमें अंततः अस्पताल की ही शरण में जाना चाहिए । जब जागो तब सवेरा । हम किसी की श्रद्धा पर छीटाकसी नहीं करते । श्रद्धा के बाद अंधश्रद्धा का शिकार हम क्यों हो जाते हैं, यही आज का सबसे बड़ा प्रश्न है ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
13.07.2019

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