Wednesday 30 May 2018

Vishw tobaco nishedh diwas : विश्व तम्बाकू निषेध दिवस

बिरखांत- 214 : 31 मई, आज विश्व तम्बाकू निषेध दिवस 

       प्रति वर्ष 31 मई को पूरे विश्व में तम्बाकू से होने वाली हानियों के बारे में जनजागृति के लिए धूम्रपान निषेध (तम्बाकू निषेध ) दिवस मनाया जाता है | इसे WNTD आर्थात world no tobacco day (वर्ल्ड नो टोबाकू डे )भी कहा जाता है | संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था, विश्व स्वाथ्य संगठन के अनुसार दुनिया में प्रतिवर्ष साठ लाख लोग कैंसर सहित तम्बाकू जनित रोगों से बेमौत मारे जाते हैं जबकि छै लाख लोग अप्रत्यक्ष रूप से धूम्रपान के शिकार होते हैं | वर्ष 1989 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक प्रस्ताव पास कर प्रति वर्ष 31 मई को तम्बाकू निषेध दिवस मना कर जनजागृति करने का निर्णय लिया | इस दिन प्रतिवर्ष एक नया नारा दिया जाता है |

     तम्बाकू के सभी उत्पादों में जो चार हजार रसायन होते हैं उनमें से कुछ ऐसे जहरीले होते हैं जिनके कारण सेवनकर्ता को नशा होता है | ज्योंही इन रासायनिक तत्वों की उसके रक्त में कमी आती है वह तम्बाकू अथवा धूम्रपान ढूँढने लगता है | इन जहरीले तत्वों में निकोटिन, तार तथा कार्बन -मोनो- आक्साइड मुख्य हैं जो मनुष्य के लिए बहुत घातक हैं | तम्बाकू के सेवन से हमें शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक और सांस्कृतिक हानि होती है | प्रतिदिन दस से पचास रुपये तक धूम्रपान पर खर्च करने वाला व्यक्ति वर्ष में अपनी जेब के चार हजार से बीस हजार रुपये भष्म कर देता है और बदले में मुंह, मसूड़े, गला, फेफड़े सहित शरीर के कई अंगों के कैंसर जैसे भयानक रोगों का शिकार हो जाता है |

     कोई भी व्यक्ति नशा, धूम्रपान, तम्बाकू, गुटखा, सुरती, खैनी, जर्दा, गांजा, चरस, अत्तर, नश्वार का प्रयोग करना अपने मित्रों, सहपाठियों, सहकर्मियों, सहयात्रियों और संगत से सीखता है | कुछ लोग तो तम्बाकू -नशा- धूम्रपान को महिमामंडित भी करते हैं | देवभूमि में ‘जागर’ में डंगरियों को ‘भंगड़ी’ के रूप में सुल्पे या हुक्के में तम्बाकू या चरस- गांजा भरकर दिया जाता है, (अब शराब भी परोसी जा रही है) जिसका यह मतलब बताया जाता है कि डंगरिये में नशा पीकर आत्मज्ञान उपजता है | कीर्तन मंडली में भी सिगरेट या सुल्पे में भरकर ‘शिवजी की बूटी’ के नाम से चरस पी जाती है जिसे बाबाओं का खुलकर समर्थन और संरक्षण मिलता है | ये लोग स्वयं तो पीते हैं तथा अन्य को अप्रत्यक्ष रूप से पिलाते हैं |

      किसी बैठक या चौपाल में एक बड़ी चिलम (फरसी) में एक साथ कई लोग तम्बाकू का मिलकर सेवन करते हैं | इनमें यदि एक को टी बी (क्षय रोग) होगी तो टी बी का बैक्टीरिया ट्यूबरिकल बेसिलस अन्य सभी चिलम गुड़गुडाने वालों के फेफड़े तक पहुँच जायेगा | देवभूमि में बारातों में भी बीड़ी- सिगरेट बड़ी शान से बांटी जाती है | बरेतियों या घरेतियों को नाश्ता तथा भोजन के बाद एक ट्रे या थाली में बीड़ी- सिगरेट भी परोसी जाती है | मुफ्त में मिलती है तो सभी पीते हैं | बच्चे भी छिप- छिप कर लेते हैं | नहीं पीने वाले भी मुह पर लगा लेते हैं | ‘मुफ्त का चन्दन घिस मेरे नंदन’ वाली कहावत का प्रैक्टीकल देखने को मिलता है | इस तरह मजाक में या मुफ्त में हम धूम्रपान करना सीख जाते हैं |

       धूम्रपान के विरोध में आयोजित एक जनजागृति कक्षा में कुछ लोगों ने पूछा, “सर खाना खाने के पश्चात् धूम्रपान की तुरंत हुड़क क्यों उठती है ?” यह सवाल सही था | ऐसा अक्सर होता है | धूम्रपान करने वालों के रक्त में निकोटिन जब तक एक निश्चित मात्रा में रहता है उन्हें कोई परेशानी नहीं होती | भोजन करते ही उनके रक्त में निकोटिन का स्तर गिरने लगता है क्योंकि निकोटिन को कलेजा (लीवर) निष्क्रिय करता है और भोजन के पश्चात लीवर में रक्त की बढ़ोतरी होने लगती है | लीवर में अधिक रक्त पहुँचने से उसका निकोटिन स्तर निष्क्रिय होने लगता है और धूम्रपान करने वाले को परेशानी अर्थात  निकोटिन की आवश्यकता महसूस होने लगती है जिस कारण वह भोजन के तुरंत बाद धूम्रपान के लिए अथवा तम्बाकू या गुटखा (या अन्य नशा) सेवन के लिए तड़पने लगता है | 
   
     जब जागो तब सवेरा | यदि आप, आपके मित्र, परिजन, संबंधी, सहकर्मी या कोई अनजान आपको धूम्रपान करते या गुटखा- तम्बाकू खाते हुए दिखें तो एक बार विनम्रता से जरूर कहिये-

“जिगर मत जला,
मत छेद कर अपने फेफड़े में,
मौत रूपी कैंसर से डर,
अपने बीबी- बच्चों की और
अपने शरीर की तरफ देख |”

      सेवन करने वाला एकबार जरूर सोचेगा | मैंने प्रयास किया और सफलता भी मिली | एक बार आप भी कह कर देखिये तो सही |

पूरन चन्द्र काण्डपाल
31.05.2018

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