Saturday 19 May 2018

Karnatak : कर्नाटक

खरी खरी - 241 : कर्नाटक में जो हुआ

     हाल के दिनों में हम सबको कर्नाटक ने अपनी ओर खींचा । 12 मई 2018 को यहाँ विधानसभा चुनाव हुए और 15 मई को निकले परिणाम में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला । यहां से सत्ता के लिये उचित/अनुचित कदम उठने शुरु हुए । सत्ता का नशा है ही ऐसा । जन सेवा का नशा सिर्फ भाषण में होता है । सत्ता के लिए दलों में रस्साकसी आरम्भ हुई । संविधान की  व्याख्या अपने -अपने हिसाब और तर्क से होने लगी । गोआ, मणिपुर, मेघालय और बिहार के पन्ने भी पुनः खुल गए । इस चुनाव प्रचार में भाषा और भाव-भंगिमा ने हवा को बहुत प्रदूषित किया जिससे वातावरण में खूब कड़ुवाहट घुली ।

     राजनैतिक दलों के समर्थकों में भी खूब अनबन हुई । अशिष्ट भाषा की सीमाएं लांघी गई । यह प्रजातंत्र के लिए अच्छा नहीं था । वर्तमान से लेकर पूर्व के राज्यपालों के कृतित्व के पन्ने भी कई वरिष्ठ पत्रकारों-लेखकों ने खोले । कुल मिलाकर संविधान की पंक्तियां लोगों को न्यायालय ले गईं जहां से न्याय की किरण प्रस्फुटित हुई । जो हारे वे नाराज और जो जीते वे खुश हुए ।  इस बीच मार्केटिंग की हवा भी चली परन्तु बाजार बंद रही ।

     अंततः प्रजातंत्र की जीत हुई । अब जिन लोगों को प्रजातंत्र की अंक संख्या ने सत्ता सौंपी है उनका कर्तव्य है कि सब कडुवाहट भूलकर राज्य के हित में जी-जान से जुट जाएं तभी एक अच्छा संदेश समाज में जायेगा अन्यथा राजनीतिज्ञों के प्रति नफरत के जो अंकुर पनपने लगे हैं वे दुःखदायी होंगे जो हमारे लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी हो सकती है । निराशा को भगाते हुए इतना अवश्य कहा जा सकता है कि देश में लोकतंत्र की जड़ें बहुत मजबूत हैं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
20.05.2018

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