Wednesday 2 May 2018

Bura to hai hee bura : बुरा तो है ही बुरा

खरी खरी - 229 : बुरा तो है ही बुरा

     अंग्रेज साहित्यकार शेक्सपियर ने 'मैकबेथ' में लिखा है, " The best of this kind are but shadow, the worst is no worse if imagination amend them."  इसका तातपर्य यह यह है कि इस दुनिया में अच्छा क्या है, बुरा क्या है यह सब किसी के सोचने पर निर्भर करता है । जेब काटना बुरी बात है और यह अपराध भी है । फिर भी जेबकतरे अपना काम अविरल कर रहे हैं बल्कि कुछ तो संरक्षण प्राप्त बताए जाते हैं ।  23 मार्च 2018 को अन्ना की रामलीला मैदान रैली में 100 से अधिक मोबाइल चोरी हुए और जेब तराशी भी खूब हुई । 29 अप्रैल 2018 की राजनैतिक रैली में भी शातिर चोरों ने चांदी काटी । बताया जारहा है कि 50 से अधिक मोबाइल चोरी हुए और 150 से अधिक लोगों की जेब कटी ।

     जेबकतरों के लिए जेब काटना बुरा काम नहीं है । उनके चंगुल में शरीफ लोग ही आते है क्योंकि स्मार्ट व्यक्ति पहले से चौकन्ना रहता है । इसी तरह असामाजिकतत्व भी अपने कार्य को बुरा नहीं मानते । कुछ पकड़े जाते हैं और कुछ डॉन बनकर फिरते रहते हैं । देश की जेलों में करीब साढ़े तीन लाख से अधिक अपराधी हैं जिन्होंने अच्छाई से नाता तोड़ते हुए बुराई से नाता जोड़ा । 22 अप्रैल 2018 से संशोधित दुष्कर्म अपराध कानून एक अध्यादेश के जरिये लागू हुआ है । उस दिन से दुष्कर्म के अपराध घटे नहीं हैं ।

     संक्षेप में कहूं तो हमने भी तो बुरे को बुरा कहना छोड़ दिया है ।  एक सत्य यह भी है कि समाज में बुराई बढ़ी नहीं है परन्तु बुराई को सहन करने वाले बढ़ गए हैं । संवेदनशीलता घटते जा रही है । हम बंद नयनों से चुप्पी साधे चूहा दौड़ में चलायमान हैं । जब सभी का यही हाल है तो हालात को बदलेगा कौन ? मित्रों  निराशा के घुप्प अंधेरे से हमें बाहर आने की हिम्मत जुटानी होगी और दिखाना होगा कि हम जिंदी लाश नहीं हैं । जिस दिन जेबकतरों को हमारे जिंदा होने का ऐहसास हो जाएगा उस दिन समा बदल जाएगी, नव-प्रभात का अभिनंदन होगा । तू जिंदा है तो जिंदगी में जीत की यकीन कर...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
02.05.2018

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