बिरखांत- 211 : गंगा मैली ही रही
आज गंगा को साफ़ करने की खूब जोर-शोर से बात हो रही है. बहुत अच्छी बात है. बात तो पिछले चार दसकों से हो रही है लेकिन ढाक के तीन पात । निष्परिणाम का मुख्य कारण-काम कम शोर ज्यादा, कथनी-करनी में अंतर, वोट बैंक के नाराज होने का डर, अंधविश्वास से लगाव, अकर्मण्यता का दंश और ईमानदारी का अभाव ।
पिछले चार दसकों से इस मुद्दे पर कई लेखकों की कलम चल रही है । मैंने भी अपनी पुस्तक 'माटी की महक, यथार्थ का आईना, सच की परख, उत्तराखंड एक दर्पण, उजाले की ओर' सहित कई पत्र-पत्रिकाओं एवं समारिकाओं के माध्यम से गंगा के संताप की बात विभिन्न तरीके से उठाई |
गंगा की लम्बाई 2525 कि मी है । यदि गंगा को 5 -5 कि मी के 505 भागों में बांटा जाय और प्रत्येक 5 कि मी के हिस्से पर कड़ा पहरा लगाया जाय तो गंगा गन्दगी और अतिक्रमण से बच सकती है | भाषण में जोर है परन्तु क्रियान्वयन नहीं है | गंगा में सभी प्रकार का विसर्जन बंद होना चाहिए | आज भू-विसर्जन अर्थात सभी प्रकार के धार्मिक विसर्जन, पूजन सामग्री, मूर्ति विसर्जन आदि को जमीन में दबाना चाहिए | शव दाह भी जहाँ सुविधा है सी एन जी फर्नेश में होना चाहिए |
यदि हमने भू-विसर्जन की परम्परा अपना ली और सभी गंदे नाले गंगा में गिरने बंद हो गए तो गंगा स्वत: स्वच्छ हो जायेगी | अन्यथा बिना जमीन में कुछ काम किये ढोल -डमरू- डुगडुगी बजाकर, मंत्री बदल कर शोर मच रहा है, मचाते रहो और बीच-बीच में धर्म को भी घसीटते रहो | मदारी के जोर और डुगडुगी के शोर पर ही तो बन्दर नाचता है | गंगा की डाड़ राजनीति की गाड़ में हमेशा ही बहती रही है | धर्म- कर्म -पुण्य के नाम पर हम सब नदियों के रूप- रंग को बिगाड़ रहे हैं |
हमें कौन रोकेगा? क्या सभी फेसबुकिये इस बात की चर्चा अपने घर, मित्रों एवं कर्मस्थान पर करेंगे? दिल्ली में यमुना का भी बुरा हाल है । सबसे अधिक दुर्गति निगमबोधघाट पर हो रही है जहां शवों की राख से यमुना एक गंदे नाले में बदल गई है ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
10.05.2018
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