Wednesday 23 May 2018

Pm sir ke man kee baat : पीएम सर के मन की बात

बिरखांत- 213 :  पी एम सर के मन की बात 

   माननीय प्रधानमंत्री जी आपके ‘मन की बात’ को हम रेडियो पर बड़े ध्यान से सुनते हैं | आपने कुपोषण, नदियों के प्रदूषण, शिक्षा- प्रसार, किसान समस्या, गरीबी, विकास आदि जैसे कई विषयों पर देश की जनता से अपने मन की बात कही है | आप यदा-कदा श्रोताओं से सुझाव भी आमंत्रित करते हैं | आपके मन में हमारे तथाकथित ‘सपेरों के देश’ को ‘माउस’ पकड़ने वालों का देश बनाने की भी लालसा है | आपकी सब बातों से जन-मानस का मनोबल बढ़ता है और निराशा दूर होती है |

     आप ने काशी को क्योटो बनाने का सपना भी दिखाया है और ‘बुलेट’ ट्रेन चलाने की बात भी कही है परन्तु हमारे देश की जमीनी हकीकत कुछ अलग ही है | काशी और हरिद्वार सहित देश की नदियों एवं मंदिरों में स्थापित  मूर्तियों में जो हजारों- लाखों लीटर दूध भगवान् के नाम पर प्रतिदिन  बहाया जाता है उसे नहीं बहाने की बात भी यदि आप कर देते तो यह दूध उन कुपोषित बच्चों के मुंह में चला जाता जो दूध की एक बूंद को तरसते हैं |  ताजा उदाहरण हरिद्वार का है |

      कुछ महीने पहले हरिद्वार में बाल्टियां भर-भर कर दूध गंगा में बहाया गया | इस आयोजन में हमारे नेता भी उपस्थित थे | यह दृश्य देश के राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्रों सहित कई टी वी चैनलों पर भी छाया रहा | उसी दिन उत्तरप्रदेश के हमीरपुर में चालीस हजार बच्चों के कुपोषित होने का समाचार भी छपा था |

     काश ! गंगा में बहाया गया यह दूध इन बच्चों के मुंह तक पहुँच पाता तो यह अवश्य ही कुछ हद तक इनका कुपोषण दूर होता | सर, मेरा आपसे अनुरोध है कि अगली ‘मन की बात’ में कृपया कुछ बातें अंधविश्वास के विरोध में  भी जरूर शामिल करने का कष्ट करें | साथ ही देश के धर्माचार्यों, बाबाओं एवं साधु-संत समाज से भी आग्रह करें कि वे भी देश को अंधविश्वास से बचाने की बात करें |

     आपके कहने पर यदि इनका सहयोग मिल गया तो देश को अन्धविश्वास की जंजीरों से मुक्ति मिल सकती है | आपके द्वारा चलाया गया स्वच्छता अभियान भी तभी गति पकड़ेगा जब इसमें सभी धर्माचार्य सहभागी बनेंगे | यदि हम अंधविश्वास के सांकलों से मुक्त हो गए तो हमारी नदियाँ भी कई प्रकार के विसर्जन से बच जायेंगी जिसमें मूर्ति विसर्जन भी शामिल है |

    यदि हम जल विसर्जन की जगह भू-विसर्जन अपना लें अर्थात विसर्जित की जाने वाली सभी वस्तुओं को जमीन में दबा दें ( क्योंकि पानी में भी तो ये मिट्टी में ही मिलेंगी), शव-दाह के लिए जहां उपलब्ध है सी एन जी या बिजली की फर्नेश अपना लें तो जीवन दायिनी नदियाँ और वृक्ष तो बचेंगे ही, प्रदूषण भी थमेगा और अन्धविश्वास जनित कई समस्याएं स्वत: ही हल हो जायेंगी |

पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.05.2018

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