Wednesday 2 May 2018

Jeewan n rahne par : जीवन नहीं रहने पर

बिरखांत -210 : जीवन नहीं रहने पर

    कुछ दिन पहले एक राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्र में पढ़ा कि जाने- माने कवि एवं लेखक अशोक चक्रधर (पद्मश्री) जी ने भी मृत्युपरांत अपनी देह का दान कर दिया है | इससे पहले विख्यात साहित्यकार विष्णु प्रभाकर जी ने भी देहदान किया था | कितने ही लोग देहदान या अंगदान करते होंगे, सबका पता नहीं लग पाता जबकि हमारे देश में देहदान करने वालों के संख्या कम ही बतायी जाती है |

     मृत्यु के बाद अपनी देह का दान करना बहुत बड़ा पुण्य-  कर्म है और यदि मोक्ष है तो यही है | मरने के बाद यह शरीर किसी के काम आ जाए तो इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है ?अंततः शरीर ने तो राख होकर पंचतत्व में मिलना ही है | हमारे देश में कई धर्मों के अनुयायी हैं जिनमें बताया जाता है कि जोरास्टर लोग शव को एक टावर में रखते हैं जहां वह चील, कौवे और गिद्धों का सुलभ भोजन बन जाता है |

     देहदान से क्या होगा ? अभी तक समाज में इस प्रश्न की चर्चा भी अच्छी नहीं समझी जाती जैसे आज से पचास वर्ष पहले वीमा करने की चर्चा का अर्थ होता था कि ‘ये आदमी मरने की बात कर रहा है |’ आज समझदार लोग वीमा अवश्य करते हैं | जीते जी जमा राशि मिल जाय तो अपने लिए उत्तम और मरने के बाद अपनों के लिए उत्तम | हमारे समाज में शरीर दान तो छोड़ो, नेत्र दान की बात भी लोगों को अच्छी नहीं लगती| हाँ, लोगों को किसी के मरने पर ‘वह इतने अंग दान कर गया’ की खबर शायद अच्छी लगती है |

     अब कुछ लोग नेत्रदान करने लगे हैं परन्तु यह मृत्यु के छै घंटे के अन्दर हो जाना चाहिए | मृत्यु के बाद देहदान समाज के लिए बहुत उपयोगी है| शरीर के बहुत से अंग जैसे दिल, दिमाग,  गुर्दे, लीवर, पित्ताशय, आँख, आंत, फेफड़े, पेट की झिल्ली, कार्टिलेज, कौर्ड,  वाल्व, पंक्रियाज,  हड्डियाँ, मज्जा, त्वचा आदि मृत्यु के कुछ घंटे बाद भी किसी अन्य के काम आ सकते हैं | कौमा में गए व्यक्ति (ब्रेन डेथ) का तो अंग-अंग उपयोग में लाया जा सकता है बसर्ते उसके स्वजन तैयार हो जाएं |

    कैसे करें देहदान ? देहदान हम जीते जी स्वयं भी कर सकते हैं और किसी के वारिस भी यह पुण्य- कर्म कर सकते हैं |किसी भी मेडिकल कालेज (जैसे के मौलाना आजाद मेडिकल कालेज) के अनाटॉमी विभाग में जाकर फार्म भर दीजिये या फार्म घर भी मांगाया जा सकता है | मृत्यु में बाद जो परिजन शव को दाह के लिए ले जाने के बजाय इस कालेज को सूचित करते हैं | वहाँ से अम्बुलेंस स्टाफ सहित आती है जो शव को ले जाती है | शव को वहाँ पहुंचाने के लिए कुछ परिजन जाते हैं जो वहां कुछ कागजों में हस्ताक्षर करते हैं | देश के मेडिकल कालेजों में भावी चिकित्सकों को प्रशिक्षण देने के लिए शवों के बहुत कमी है जबकि श्मशान घाटों में अनगिनत चिताएं रोज जलती हैं | मेडिकल कालेज भी प्रशिक्षण के बाद अंत में शव को स्वयं के इंसीनिरेटर (स्वचालित भट्टी ) में अपने स्टाफ द्वारा अग्नि को सुपुर्द कर उस राख को किसी वृक्ष के तले धरा में विसर्जित कर देते हैं |

     हम यह नहीं जानते कि कौन कब, कहां और कैसे इस शरीर का त्याग करेगा? फिर भी हरेक व्यक्ति की यही इच्छा होती है कि वह जीवन के अंतिम दिनों में अपनों के बीच रह कर इस देह को छोड़े| उसके मरने के बाद उसके शरीर पर उसके परिजनों (वारिसों) का हक़ होता है जो स्वेच्छा से उसका अंतिम संस्कार करते हैं | इस संस्कार में कर्मकांड के ठेकेदार उसका अंधाधुंध शोषण भी करते हैं और उसे अपनी ही परिधि में बांधे रखने का भरपूर प्रयास करते हैं, उसे धर्म या यम के नाम से डराते हैं |

      यदि मृतक द्वारा अपनों से अपने देहदान की चर्चा की गई होगी तो वे अवश्य ही उस नेक कर्म को पूरा करेंगे और किसी भी प्रकार के अन्धविश्वास का शिकार नहीं होंगे | यदि मोक्ष नाम की कोई चीज है तो वह देहदान ही है | इस महादान के लिए अभी बहुत जनजागृति की आवश्यकता है | देहदान के बारे में एम ए एम सी फोन नंबर ०११-२२७१४६८९ से संपर्क भी किया जा सकता है | इन पंक्तियों का लेखक होने के नाते बताना चाहूंगा कि मैं वही कहता या लिखता हूँ जिसे मैं स्वयं क्रियान्वित किया जा सकता है | मेरा संकेत स्पष्ट है | अगली बिरखांत में कुछ और ...

पूरन चन्द्र काण्डपाल,
03.05.2018

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