खरी खरी - 247 : परीक्षा परिणाम - कहीं खुशी कहीं गम
सीबीएसई में 12वीं औऱ 10वीं के परिणाम आते ही कहीं हर्सोल्लास हुआ तो कहीं निराशा भी छा गई । इस साल इन परीक्षाओं के टॉपरों ने 499/500 (12वीं में एक और 10वीं में चार टॉपरों ने यह चमत्कार किया ) अंक प्राप्त कर परचम को अधिक ऊंचाई तक फहरा दिया । द्वितीय और तृतीय वाले भी 498 औऱ 497 के साथ बड़ी निकटता बनाये रहे । 12वीं में तो 7 विद्यार्थियों ने 497 के अंक के साथ तृतीय स्थान को छुआ । लड़कियों ने अपनी श्रेष्ठता इस साल भी बनाये रखी । 12वीं में 83.01% और 10वीं में 86.7% विद्यार्थी उत्तीर्ण हुए ।
परीक्षा परिणाम का दूसरा पहलू हमें निराश भी करता है । जो बच्चे फेल हुए उनमें से कुछ ने अनुचित कदम भी उठाने का प्रयास किया और 10वीं के दो विद्यार्थी इस निराशा में अपनी जान दे बैठे । इनमें एक के 70% तो दूसरे के 59% अंक बताए जाते हैं । असफल विद्यार्थियों को निराश नहीं होना चाहिए और पुनः परिश्रम के साथ पढ़ाई में जुट जाना चाहिए । आत्महत्या जैसे कदम उठाना एकदम अनुचित है जो किसी भी हालत में सही नहीं ठहराया जा सकता ।
हमारे देश में शिक्षा की हालत ठीक नहीं है । एक समाचार के अनुसार देश में करीब 18 करोड़ बच्चे आरम्भ में स्कूल जाते हैं और 12वीं तक मात्र डेड़ करोड़ बच्चे ही पहुंच पाते हैं । बाकी 16.5 करोड़ बच्चे कहां गए ? यह संख्या अकुशल मजदूरों के समूह में जाकर जीवनपर्यंत धक्के खाते रहती है । सर्व शिक्षा अभियान के बावजूद हमारा शिक्षा कार्यक्रम सही दिशा नहीं पकड़ पाया अन्यथा बच्चों की इतनी बड़ी संख्या अकुशल मजदूर नहीं बनती ।
नोबेल पुरस्कृत, बचपन बचाओ आंदोलन के प्रणेता कैलाश सत्यार्थी जी के अनुसार यदि सरकार के साथ -साथ हमारे मंदिर- मस्जिद- चर्च तथा अन्य पूजालय भी बच्चों की शिक्षा के बारे में गंभीरता से सोचते तो एक सामाजिक परिवर्तन के साथ शिक्षा का उत्तम फैलाव होता और अकुशल मजदूरों की संख्या इतनी नहीं होती । हमें अपने और अपने समाज के बच्चों को आरम्भ से ही शिक्षा की ओर प्रेरित करना चाहिए तभी सम्पूर्ण देश उन्नति करेगा । हमारे इर्द- गिर्द अनपढ़, नशेड़ी, अशिष्ट, दुष्कर्मी, चोर, जेबकतरे और असामाजिकतत्व बन गए अधिकांश बच्चे स्कूल ड्रॉपआउट (शिक्षा छोड़े) ही होते हैं । इस सामाजिक समस्या पर हमें चिंतन तो करना ही होगा ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
01.06.2018
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