Saturday 12 May 2018

Bala goriya : बाला गोरिया मंचन

मीठी मीठी- 108 : "बाला गोरिया" संगीतमय कुमाउनी नाटक

     12 मई 2018 को सायँ 6.30 बजे से 8.30 बजे तक दिल्ली ITO स्थित प्यारेलाल भवन आडिटोरियम में पर्वतीय लोक कला मंच दिल्ली (पंजि) के कलाकारों द्वारा   "बाला गोरिया" (संगीतमय कुमाउनी नाटक) का मंचन किया गया । इस नाटक का मंचन 13 मई को भी इसी समय पुनः होगा । मंचन में शामिल करीब 30 कलाकारों ने समा बांध दिया । कलाकारों ने करीब डेड़ घंटे के नाट्य मंचन में खचाखच भरे सभागार में बैठे दर्शकों को लगातार ताली बजाने पर मजबूर कर दिया । पर्दे के पीछे के कलाकारों ने भी कोई कमी नहीं छोड़ी । महिला पात्र हों या पुरुष पात्र, सभी कलाकारों ने मंच पर दमदार भूमिका निभाई । यह इन कलाकारों के सामूहिक कला-श्रम का प्रतिफल था कि दर्शक अंत तक अपनी जगह से हिल नहीं पाए । 

     इस नाटक का कुशल निर्देशन संयुक्त रूप से गंगा दत्त भट्ट जी एवं हेम पंत जी ने किया । पटकथा भी हेम पंत जी ने लिखी । कर्णप्रिय संगीत निर्देशन चंचल प्रसाद जी ने किया । इस नाटक ने हमारी मातृभाषा कुमाउनी को भी सिंचित किया । संस्था के संयोजक हीरा बल्लभ काण्डपाल और अध्यक्ष गंगादत्त भट्ट सहित पूरी टीम को इस सफल आयोजन की बधाई । सभी कलाकारों का नाम देना यहां मुमकिन नहीं है फिर भी वरिष्ठ कलाकार गंगा दत्त भट्ट, हेम पंत, महेंद्र लटवाल, खिमदा, भूपाल बिष्ट, पुष्पा सिद्दीकी, ममता कर्नाटक, करुणा भट्ट, दीपिका पांडे, लक्ष्मी महतो, लक्ष्मी पटेल आदि ने उतना ही दिल जीता जितना सभी जूनियर आर्टिस्ट ने जीता और जितना 'बाला गोरिया' के किरदार ने जीता । सभी कलाकारों को दिल से सलूट के साथ एक बहुत बड़ा जयहिन्द ।

     "बाला गोरिया" के बारे  में मैंने अपने कई लेखों में लोक देवता 'ग्वेल ज्यू' के नाम से चर्चा की है । मेरे कुमाउनी कविता संग्रह "उकाव-होराव"( वर्ष 2008 ) में 'गोलू देवताक न्याय' नाम से 4 पृष्ठ की एक लम्बी वर्णात्मक कविता है । शोध से पता चलता है कि ग्वेल ज्यू कत्यूरी वंश (कत्यूरी शासनकाल बी.सी. 2500 से 700 ई. तक) के मध्यकालीन राजा थे । वे बड़े न्यायप्रिय थे और प्रजा को न्याय दिलाने के लिए सफेद घोड़े पर सवार होकर प्रजा के बीच जाते थे और न्याय शिविर लगाते थे । वर्तमान में ताड़ीखेत, चितई, घोड़ाखाल आदि जगहों पर जहां ग्वेल ज्यू के मंदिर हैं वहीं पर उनका शिविर लगता था । बताया जाता है कि  नैनीताल के पास जिस तालाब में उनका घोड़ा डूब कर ग्वेल ज्यू के साथ ही अदृश्य हो गया उसे आज घोड़ाखाल कहते हैं जो एक पर्यटन का केंद भी बन चुका है ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
13.05.2018
(मोब.9871388815)

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