खरी खरी - 233 : पढ़ी लेखियां क हाल
भलेही घर क मंदिर में
राति-ब्याव दी जगूं रयूं,
फिर लै पुछ्यारूंक कूण पर
रोज यथां- उथां भटकैं रयूं,
राम-कृष्ण रामायण-गीता छोड़ि
ओझा-पंड- तांत्रिकों कैं पुजैं रयूं,
आज लै द्याप्तां क नाम पर
खूब उटपटांग पाखंड करैं रयूं ,
पुजपाठ जागरण क नाम पर
जोर-जोरैल लौस्पीकर बजूं रयूं,
बीमार बुजुर्ग विद्यार्थी नानतिन
भलेही क्वे उ रात झन स्येतण,
मि धर्मक काम करैं रयूं ।
( हमरि कुमाउनी भाषा 1100 वर्ष पुराणि छ, यैकैं ज्यौन धरो । य ज्योंन तब रौलि जब सब यकैं व्यवहार में ल्याल । )
पूरन चन्द्र काण्डपाल
08.05.2018
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