Monday 28 June 2021

Nadiyan : नदियां

खरी खरी- 879 : जब नदियाँ नहीं रहेंगी ?

    हल्द्वानी से मेरे एक मित्र ने पूछा है कि जहां CNG या विद्युत शवदाह की व्यवस्था नहीं है वहां तो लोग नदी किनारे ही शवदाह करेंगे । मेरा विनम्र निवेदन है कि जहां CNG या विद्युत शवदाह उपलब्ध है वहां भी लोग इनका उपयोग करने में हिचकते हैं । यमुना, गंगा या किसी नदी किनारे चिता में जलाने से मृतक स्वर्ग जाएगा बताया जाता है । हम पर तो अंधविश्वास औऱ प्रथा-परम्परा का रंग चढ़ा है ।

       प्रथा- परम्परा मनुष्य देश- काल- परिस्थिति देखकर बनाता है । मनुष्य को प्रथा - परम्परा नहीं बनाती । उत्तराखंड में जहां नदी नहीं है वहां भी शवदाह होता है । गांव से दूर इसके लिए भूमि निर्धारित है । सवाल तो यह है कि जब नदी नहीं रहेगी तो तब क्या अंधविश्वास ग्रसित लोग शायद शव को लेकर दाह करने समुद्र किनारे जाएंगे  ? उत्तराखंड में सौनी क्षेत्र से उदगम होकर खैरना -भुजान पर कोशी नदी में मिलने वाली कुजगढ़ नदी लगभग सूख गई है, अब केवल बरसात में ही पुनर्जीवित होती है ।  हमें अपनी भावी पीढ़ी के लिए जल बचाना है, इसलिए नदियों को बचाना है । कोविड के दौर में शव दाह और अंत्येष्टि की सभी परमपराएं टूट गईं ।

      नीति आयोग के अनुसार (रिपोट 15 जून 2018)  देश में निकट भविष्य में जल की गंभीर समस्या होने वाली है । वर्तमान में भी देश की आधी जनसंख्या को पीने का पानी ठीक से उपलब्ध नहीं है । देश की तीन चौथाई आबादी को पीने के पानी के लिए दूर-दूर तक जाना पड़ता है । कुएं, बावड़ी, चश्मे, नौले, धारे, सीर, छिड़, आदि सब सूख गए हैं । भूजल बहुत नीचे चला गया है । गांवों की अधिकांश आबादी जलापूर्ति से वंचित है । जो पानी उपलब्ध है उसका अधिकांश भाग प्रदूषित है । गंदे नालों से नदियों का रूप बिगड़ गया है। विसर्जन के नाम पर हैं नदियों में सबकुछ डाल रहे हैं।   बस कुछ नदियां हीं बचीं हैं जिन्हें हम प्रथा -परम्परा से ग्रसित होकर समाप्त करने में लगे हैं । वैश्विक जल गुणवत्ता सूचकांक में भी विश्व में हम बहुत पीछे हैं।  सोचें, समझें और बदलाव स्वीकार करें ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
29.06.2021

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