Wednesday 9 June 2021

Mrityubhoj, Brahambhoj : मृत्युभोज, ब्रह्मभोज

बिरखांत -374 : मृत्युभोज या ब्रह्मभोज क्यों ?

      भारत के अनुशासन पर्व में लिखा है कि  मृत्युभोज खाने वाले की ऊर्जा नष्ट हो जाती है। जिस परिवार में मृत्यु जैसी विपदा आई हो उसके साथ इस संकट की घड़ी में जरूर खडे़ हों और तन, मन, धन से सहयोग करें लेकिन बारहवीं या तेरहवीं पर मृतक भोज का पुरजोर बहिष्कार करें। देश में कई लोग इसका बहिष्कार करते भी हैं।

       महाभारत का युद्ध होने को था, अतः श्री कृष्ण ने दुर्योधन के घर जाकर युद्ध न करने के लिए संधि करने का आग्रह किया । दुर्योधन द्वारा आग्रह ठुकराए जाने पर श्री कृष्ण को कष्ट हुआ और वह चल पड़े, तो दुर्योधन द्वारा श्री कृष्ण से भोजन करने के आग्रह पर कृष्ण ने कहा कि ’’सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानिवा पुनैः’’अर्थात् “जब खिलाने वाले का मन प्रसन्न हो, खाने वाले का मन प्रसन्न हो, तभी  भोजन करना चाहिए लेकिन जब खिलाने वाले एवं खाने वालों के दिल में दर्द हो, वेदना हो, तो ऐसी स्थिति में कदापि भोजन नहीं करना चाहिए ।”

     हिन्दू धर्म में मुख्य 16 संस्कार बनाए गए है, जिसमें प्रथम संस्कार गर्भाधान एवं अन्तिम तथा 16वां संस्कार अन्त्येष्टि है । इस प्रकार जब सत्रहवाँ संस्कार बनाया ही नहीं गया तो सत्रहवां । संस्कार ‘तेरहवीं का भोज’ कहाँ से आ टपका । किसी भी धर्म ग्रन्थ में मृत्युभोज का विधान नहीं है। बल्कि महाभारत के अनुशासन पर्व में लिखा है कि मृत्युभोज खाने वाले की ऊर्जा नष्ट हो जाती है लेकिन हमारे समाज का तो ईश्वर ही मालिक है ।

   जिस भोजन को बनाने का कृत्य….रो रो कर हो रहा हो….जैसे लकड़ी फाड़ी जाती तो रोकर….आटा गूँथा  जाता तोरोकर…एवं पूड़ी बनाई जाती है तो रोरोकर…यानि हर कृत्य आँसुओं से भीगा हुआ । ऐसे आँसुओं से भीगे निकृष्ट भोजन अर्थात बारहवीं एवं तेरहवीं के भोज का पूर्ण रूपेण बहिष्कार कर समाज को एक सही दिशा दें।

          जानवरों से भी सीखें, जिसका साथी बिछुड़ जाने पर वह उस दिन चारा नहीं खाता है । जबकि 84 लाख योनियों में श्रेष्ठ मानव, जवान आदमी की मृत्यु पर हलुवा पूड़ी पकवान खाकर शोक मनाने का ढ़ोंग रचता है । इससे बढ़कर  निन्दनीय कोई दूसरा कृत्य हो नहीं सकता । यदि आप इस बात से सहमत हों, तो आप आज से संकल्प लें कि आप किसी के मृत्यु भोज को ग्रहण नहीं करेंगे और मृत्युभोज प्रथा को रोकने का हर संभव प्रयास करेंगे । इसकी जगह पर श्रद्धांजलि सभा होनी चाहिए जिसमें उस दिवंगत का स्मरण करते हुए उसे श्रद्धांजलि अर्पित की जाए ।  इस प्रयास से यह कुप्रथा धीरे धीरे एक दिन अवश्य ही पूर्णत: बंद हो जाएगी । मृत्युभोज समाज में फैली कुरिती है व समाज के लिये अभिशाप है । समाज हित में मृत्यु भोज से परहेज करें ।  यदि कोई इस हेतु धन खर्चना चाहता है तो उस धन से मृतक के नाम पर अपने नजदीकी विद्यालय में छात्रवृति आरम्भ करें या उन मासूम अनाथों के लिए दान करें जिनके अभिभावक अब नहीं रहे  । सुकूंन भी और जनहित भी और सामाजिकता भी ।

   ( साभार संपादित पोस्ट जिसमें सत्य और यथार्थ है । हम सब मंथन करें ।)

पूरन चन्द्र काण्डपाल
10.06.2021

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