Sunday 27 June 2021

Gveljyu : ग्वेल ज्यू।

बिरखांत- 378 : ग्वेल ज्यू कसी बनी द्याप्त ?

     उत्तराखंड में ग्वेल/ गोलु/ गोरिल/ गोरिया/ दूदाधारी आदि नामल जो द्याप्त पुजी जांछ आजकि बिरखांत उनुकें कैं समर्पित छ जो उनुमें श्रद्धा धरनी | भगवान् त निराकार छीं, उनुकें न कैल देख और न क्वे उनु दगै मिल | फिर लै जब हम परेशान हुनूं, उनुकें याद करनूं | कुछ लोग मनुष्य रूप में ऐ बेर यतू लोकप्रिय है जानी कि लोग उनुकैं देव तुल्य मानण फै जानी | यसै एक दयाप्त ग्वेल ज्यू लै छीं जनार उत्तराखंड में कएक मंदिर छीं | जगरियों (दास ) क मुख बै सुणी अद्वायी और कुछ ऐतिहासिक स्रोतोंक अनुसार गोलु देवता जो उ क्षेत्रक रक्षक मानी जानी, जैकि काव्य गाथा मील आपणि किताब “उकाव-होराव” (2008) में लेखि रैछ, उनरि कहानि कुछ यसि छ -

     उत्तराखंड में कत्यूरी शासन काल ईसा पूर्व 2500 से 700 ई. तक लगभग 3200 वर्ष रौछ | य शासन में सूर्यवंशी-चक्रवर्ती राज हईं जनर भौत ठुल राज्य छी | गोलु ज्यु लै कत्यूरी वंशक राज छी | उनार बुड़बुबू तिलराई, बुबू हालराई और बौज्यू झालराई छी | गढ़ी चम्पावती- धूमाकोट मंडल य क्षेत्रक केंद्र छी | झालराई क सात ब्या करण पर लै संतान नि हइ | उनर आठूं ब्या कालिंका दगै हौछ जैकैं  पंचनाम द्याप्तां कि बैणी बताई जांछ | कालिंकाक गर्भ में गोलुक आते ही सातों सौत जलंगल बौयी गाय | उनूल कालिंकाक प्रसव होते ही एक सिन्दूक में गोलु कैं गाड़ बगै दे और प्रसव में ‘सिल- ल्वड़’ पैद हौछ बतै देछ | सिन्दूक कैं गोरिया घाट पर एक धेवरल गाड़ बै भ्यार निकाई बेर बालक कैं बचा और बालकक नाम धरौ गोरिया |

     जब बालक ठुल हौछ तो एक दिन झालराई –कालिंकाल गोलु कैं स्वैण में ऐ बेर पुरि कहानि बतै कि ऊँ उनार च्याल छीं | कहानि सुणते ही गोलु एक चमत्कारिक काठक घ्वड़ में भैटि बेर राणीघाट पुजीं जां सात सौत नां हुणि ऐ रौछी | उनूल सौतों कैं पाणी में जाण है रोकते हुए कौ, “पैली म्यर घ्वड़ पाणी प्यल |” सौतों ल जबाब दे, “काठक घ्वड़ पाणी कसी प्यल ?” जबाब, “ उसीके प्यल जसी कालिंकाल ‘सिल-ल्वड़’ कैं जन्म दे |” सौतों कैं आपणी करतूत याद ऐ गे | गोलु ज्यु सौतों कैं रजाक पास ल्ही गईं और पुरि कहानि बतै तो कालिंकाक छाति में बै दूद कि धार बगण फैगे | तब गोलु ज्यु क नाम दूदाधारी पड़ गोय | रजल सौतों कैं मौत कि सजा दी जैकैं गोलु ज्यूल ‘देश निकाल’ में बदलै दे |

     जब गोलु ज्यु राज बनीं तो प्रजाक दुःख दूर करण में लागि गईं | उनूल भ्रष्टाचार, अन्याय, गरीबी और अराजकता दूर करी | उं जन -हितक लिजी सफ़ेद रंगक घ्वड़ में बैठि बेर जनताक बीच में जांछी और सबूं कैं न्याय दिलौंछी | उं एक प्रजापालक और न्यायविदक रूप में भौत लोकप्रिय हईं जैक वजैल लोग उनरि पुज करण फैगाय | उं प्रजा कि भलाई क लिजी कैम्प लगूंछी | जिला नैनीतालक घोड़ाखाल नामक जागि पर ऊँ एक दिन घ्वड़ सहित पाणी में अंतरध्यान है गईं |

      गोलु ज्यु ल जां जां लै न्याय शिविर लगाईं वां आज लै गोलु द्याप्तक  मंदिर छीं जनूमें आज लै लोग अन्यायक विरुद्ध फ़रियाद करनी | उदाहरण क लिजी अल्मोड़ा (चितइ), रानीखेत (ताड़ीखेत), नैनीताल (घोड़ाखाल) सहित कएक जागि उनार मंदिर छीं जां फ़रियाद करणी जानीं | इनरि फ़रियादल बेईमान या अन्याइ पर मनोवैज्ञानिक दबाव पडूं जैल उ सुधरण क प्रयास करूं |

       ग्रामीण आँचल में स्थानीय द्याप्तों क बहुत ज्यादै थान-मंदिर छीं जनरि पुज में जगरिय-डंगरिय अंधविश्वास क जम बेर तड़क ( जमें पशु बलि लै छ ) लग़ै बेर सुरा-शिकार कि जुगलबन्दीक लुत्फ़ उठूनीं |  श्रद्धा हुण भलि बात छ पर अन्धश्रधा ठीक नि हुनि | एक आम आदिम में अमुक द्यप्तक अवतार हुण या नाचण एक देव नृत्य छ ( दिवंगत प्रोफेसर शेर सिंह बिष्ट इनुहैं देवनर्तक कूं छी )  किलै कि इनरि बात में क्वे जिम्मेदारी नि हुनि | वांच्छित परिणाम नि मिलण पर यूं लोग भाग्य या कर्मरेख या कर्मगति बतै बेर पल्ल झाड़ ल्हिनी | कैं न कैं इनर तीर-तुक्क लागि जांछ | अत: भगवान कि पुज एक निराकार कि चार हुण चैंछ और कैकै झांस में ऐ बेर क्वे चमत्कार कि उम्मीद नि करण चैनि |  श्रीकृष्णक कर्म संदेश हमूल याद धरण चैंछ | 

         हवन करण ल द्यो नि हुन | अगर हवन करि बेर द्यो हुनौ तो देश में कैं लै फसल चौपट नि हुनि | डंगरियोंल आपणी करामात देशहित में देखूण चैंछ और उग्रवाद पर चुनौतीक साथ नियंत्रण करण में मदद करण चैंछ | मुशर्रफ आपणी बेगमक दगाड़ ताजमहलक सामणि भैटि बेर फोटो खिचै बेर वापस गो और वापस जै बेर वील कारगिल काण्ड करौ जमै हमार 517 सैनिक शहीद हईं | बभूतक एक फुक्क यूं डंगरियों-जगरियों और तांत्रिकों ल मुसर्रफ पर मारण चैंछी ताकि वीकि बुद्धि ठीक है जानि |

पूरन चन्द्र काण्डपाल
28.06.2021

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