खरी खरी - 877 : अनसुना रह गया किसान
एक तरफ किसानों की आय दोगुनी और लागत से डेड़ गुना अधिक देने की बात विगत वर्षों से हो रही है तो दूसरी ओर देश में लगभग बारह हजार किसान प्रति वर्ष आत्महत्या कर रहे हैं । आत्महत्या का एक कारण फसल के उचित दाम नहीं मिलना भी है । कहा तो जाता है किसान का एक भी उत्पाद बरबाद नहीं होगा और भोज्य परिसंस्करण मंत्रालय इस पर नजर रखेगा । आश्वासन कब पूरे हुए है ? शिमला मिर्च और टमाटर सहित कई नकदी फसलों की बंपर फसल उगाने वाले किसानों का भी इसी तरह शोषण हुआ है और रहा है ।
ये किसान तेरे
हाल पर रोना आया,
कभी आपदा ने
तो कभी बम्पर
ने तुझे रुलाया ,
इस दौर में दर्द
तेरा अधिक बढ़ा
जब चीन से आए क्रूर
कोरॉना ने तुझे रुलाया ।
इधर तीन कृषि कानूनों के विरोध में 26 नवम्बर 2020 से आंदोलन करते हुए किसानों को आज 26 जून 2021 पूरे 7 महीने हो गए हैं । इस दौरान इस आंदोलन ने कई उतार - चढ़ाव देखे जिसमें कई किसान दिवंगत भी हो गए और कुछ ने अपनी जान दे दी । सरकार के साथ कई बैठकैं भी हुई परन्तु नतीजा कुछ नहीं निकला । इस आंदोलन के चलते किसानों का और देश का बहुत नुकसान हो रहा है । किसान भी देश के और सरकार भी देश की तथा जनता भी देश की । इस मुद्दे को सुलझाना अंततः सरकार का काम है । देश को आशा है कि इस मुद्दे को अब अधिक लंबा नहीं खींचा जाएगा। मुद्दा आपसी सामंजस्य और सौहार्द से किसानों को विश्वास में लेकर सुलझेगा । देश ने आजादी के बाद कई आंदोलन देखे और अंततः सभी आपसी बातचीत से सुलझ गए । वर्तमान किसान आंदोलन भी अंततः बातचीत से ही एक न एक दिन सुलझेगा, फिर देर क्यों की जाय ? 'जै जवान, जै किसान, जै विज्ञान' ये नारा शास्त्री जी ने लगाया और अटल जी ने विस्तार किया । इसको समझने की आज बहुत जरूरत है।
पूरन चन्द्र कांडपाल
26.06.2021
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