Thursday 24 June 2021

Kabeer ka bagicha : कबीर का बगीचा

खरी खरी - 876 : कबीर का बगीचा
(जयंती पर विशेष लेख)

     आजकल कबीर की बात हो रही है, मगहर की भी बात हो रही है । क्या उनके अंधविश्वास विरोध का भी प्रचार करेंगे ? कबीर दास एक बार स्नान करने गये वहीं पर कुछ पंडे अपने पूर्वजों को पानी दे रहे थे । तब कबीर ने भी स्नान किया और पानी देने लगे । इस पर सभी पंडे हँसने लगे और कहने लगे कि "कबीर तू तो इन सब में विश्वास नहीं करता, हमारा विरोध करता है और आज वही कार्य तुम क्यों कर रहे हो जो हम कर रहे हैं ?

     कबीर ने कहा, "नहीं, मैं तो अपने बगीचे में पानी दे रहा हूँ । "कबीर की इस बात पर पंडे हँसने लगे और कबीर से कहने लगे,  "कबीर तुम बौरा गये हो, तुम पानी इस तलाब में दे रहे हो तो बगीचे में कैसे पहुँच जायेगा ?  कबीर ने कहा जब तुम्हारा दिया पानी इस लोक से पितरलोक तुम्हारे पूर्वजों के पास पहुंच सकता है तो मेरा बगीचा तो इसी लोक में है वहाँ कैसे नहीं जा सकता है?  सभी पंडों का सिर नीचे हो गया । पितरों के सम्मान में किसी भी सुपात्र अर्थात अनाथालय, विद्यालय, जनकल्याण के लिए दान देना उचित है।

       हम धातु या मिट्टी की मूर्तियों की पूजा करते हैं परन्तु मां- बाप रूपी जीवित मूर्तियों की ओर देखते भी नहीं । देना है पानी, भोजन, कपडा़ तो अपने जीवित माँ बाप को दो । दिल से उनकी सेवा करो ।  उनका सम्मान करो । उनकी आत्मा को मत दुखाओ । उनके जाने के बाद तुम जो भी देना चाहोगे, ब्रह्मभोज /मृत्युभोज कराओगे, वह उन तक तो नहीं बल्कि पाखंडियों के पास पहुँचेगा ।

बुद्ध से बुद्धि मिली ,
कबीर से मिला ज्ञान                 
करना है करो प्यारो                    
जीते जी सम्मान ।

(साभार संपादित पोस्ट। 24 जून को कबीर जयंती पर पुनः संपादित एक अन्य लेख।)

पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.06.2021

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