Saturday 26 June 2021

Apaatkaal ki yaad : आपातकाल की याद

खरी खरी - 878 : आपातकाल की याद

     प्रतिवर्ष आपातकाल की याद में 25 जून को तत्कालीन सरकार को उनके विरोधी खूब गरियाते हैं । तीन तरह के आपातकाल का प्रावधान हमारे संविधान में है । यदि यह अनुचित है तो इसे हटाया क्यों नहीं जाता ? उस दौर का दूसरा पहलू भी है । वे दिन मुझे याद हैं जब बस- ट्रेन समय पर चलने लगे थे, कार्यालयों में लोग समय पर पहुंचते थे और जम कर काम करते थे , तेल -दाल- खाद्यान्न सस्ते हो गए थे, काले धंधे वाले और जमाखोर सजा पा रहे थे, देश में हर वस्तु का उत्पादन बढ़ गया था और भ्रष्टाचार का नाग कुचला जा चुका था, शिक्षा प्रोत्साहित हुई थी ।

     आपातकाल के बाद 1977 में चुनाव हुए और जनता पार्टी का राज आया परंतु यह राज मात्र 26 महीने ही रहा । आश्चर्य की बात तो यह है कि श्रीमती इंदिरा गांधी फिर सत्ता में आ गई । सवाल उठता है कि यदि आपत्काल बुरा था तो इंदिरा गांधी इतनी जल्दी वापस कैसे आ गई ? आपत्काल का सबसे बुरा पहलू प्रेस पर सेंसर लगाना था और नीम-हकीमों द्वारा नसबंदी आप्रेसन से बिगड़े केसों का खुलकर प्रचार भी विरोधियों ने किया था । आज भी प्रेस/मीडिया के बारे कई सवाल उठते हैं। प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ मजबूत होगा तो देश का हित होगा। यदि इस पर जंक लग गया और यह लतकने लग गया तो फिर क्या होगा ?

        आज भी मंहगाई, भ्रष्टाचार, अपराध और अकर्मण्यता कम नहीं हुई है । डीजल - पेट्रोल प्रतिदिन महंगा हो रहा है । आज दिल्ली में डीजल ₹ 88.3 (₹ 80.02 पिछले साल) और पेट्रोल ₹ 97.76 (₹ 79.92 पिछले साल) प्रति लीटर हो चुका है । इस समय देश के 9 राज्यों में पेट्रोल ₹ 100/- से पार है। हेल्थ केयर सिस्टम के चुस्त न होने से आज भी (कोरॉना को छोड़कर ) हजारों बच्चे बीमारियों से और लाखों बच्चे कुपोषण से मर रहे हैं । ट्रेनों के बारे में सब जानते हैं कि कोई भी ट्रेन समय पर नहीं पहुँचती । 45 वर्ष पहले जो हुआ उससे हमने कुछ भी नहीं सीखा । आपातकाल के बारे में पक्ष -विपक्ष में आज भी जम कर बहस होती है । वर्तमान सत्ता को देश ने इसलिए चुना कि उसने कुछ वायदे किए थे । अब उन वायदों पर कार्य करने के बजाय हर समय विरोधियों को भूतकाल के लिए  गरियाना कितना उचित है ? 

     यह हमारे प्रजातंत्र की खूबी है कि सत्ता जनता के हाथ में है।  यह दुःख तो कचोटता ही है कि सत्ता पाते ही नेता अपने ही चुनाव घोषणा पत्र को भूल जाते हैं । जिस दिन हमारे नेता कर्म- संस्कृति को दिल से अपना लेंगे उस दिन हमारा देश उन देशों में मार्केटिंग करेगा जो हमारे देश में आज अपना बाजार ढूंढते हैं । विगत मार्च 2020 से आज तक देश कोरोना से जूझ रहा है जिससे कोरोना आपतकाल समझकर दृढ़ता से जूझने की सख्त जरूरत है । कोरोना से लड़ना अकेले सरकारों के बस में नहीं है। जब तक जनता दिल से साथ नहीं देगी हम कोरोना को नहीं हरा सकते। पहली और दूसरी कोरोना लहरों में हमसे जो गलतियों हुईं उनसे बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। अब तो सबसे बड़ा कदम है 'वैक्सीन शरणम् गच्छामि।' अफवाहों से बचो, वैक्सीन लगाओ और कोरोना भगाओ। वैज्ञानिकों/चिकित्सकों के अनुसार नया डेल्टा प्लस वेरिएंट को भी वैक्सीन हरा सकती है।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.06.2021

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