मीठी मीठी - 291 : काठ कि पाइ, कस कि थाइ
चनरदा आपणि घरवाइ कि अक्सर भौत तारिफ करते रौनी । बात-बातों में बेई कै गईं -
"अहो म्येरि घरवाइ कस कि थाइ और मि काठ कि पाइ ।" मील कौ "खोलि बेर बतौ ।"
उं बलाय, "अरे पगला, तू जबरू यतू लै नि समझनै ? सुण, पाइ में लकड़ल कटैक मारो तो जरा सी ठक्क हिंछ जबकि कसै थाइ एक हल्क कटैकल भौत देर तली झनझनानै रैंछ । मि आपणि घरवाइ हैं जब एक आंखर क्ये पुछ्नू तो उ भौत देर तक बलानै रैंछ । क्ये बलैं उ म्यार समझ है भ्यार हइ । शैद त्यरि घरवाइ यौस नि करन हुनलि ।"
उता बै म्येरि बोलती बंद छ ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
15.06.2019
No comments:
Post a Comment