Wednesday 12 June 2019

Haldwani : हल्द्वानी

बिरखांत - 268 : क्या आप हल्द्वानी रहते हैं ?

( हल्द्वानी में मेरे कई मित्र, संबंधी, दोस्त, गांव के लोग, सहपाठी, मेरे पाठक, मेरे शब्दों के पसंदकार, व्यापारी, दुकानदार, नौकरशाह समेत कई बुद्धिजीवी, पत्रकार, कवि, लेखक, साहित्यकार और कलमकार रहते हैं जिन्हें मैं जानता हूं । आप सभी को यह बिरखांत दिल से समर्पित है ।)

      उत्तराखंड में जिला नैनीताल के नगर हल्द्वानी को कुमाऊँ का द्वार कहा जाता है । अब कुमाऊँ क्षेत्र से आकर सब इस द्वार में बसने लगे हैं । भीड़-भाड़ ने सुकून के जीवन को हथिया लिया है ।सबकी जमापूंजी यहां पानी-बिजली की किल्लत होने के बावजूद एक अदद आशियाना बनाने में जुटी है । आजकल हल्द्वानी मीडिया में अधिक जगह पा रहा है । इस शांत नगर में अपराध बढ़ने लगे हैं । अधिक उपापोह होने लगी है । सामाजिक सरोकार घटने लगे हैं । सब बड़े- बड़े मकान बनाने में व्यस्त हैं । इन बड़े मकानों में अधिकांश खाली हैं या उनमें वृद्धों का एक अकेला जोड़ा रहता है । किसी को अपनी विलुप्त होती भाषा, संस्कृति या सामाजिक सरोकारों से कुछ लेना- देना नहीं है । जल-जंगल-जमीन-टैंकर और अवैध कब्जा माफिया चरम पर है ।

     यकीन करें या नहीं परन्तु आम जीवन की वस्तुओं में  मिलावट भी यहां खूब गुलजार है । दूध, खोया, पनीर, क्रीम सहित सभी अधिकांश दुग्ध उत्पाद मिलावट से भरे हैं । सभी सामाजिक आयोजनों में इन मिलावटी उत्पादों का भरपूर उपयोग हो रहा है । आयोजक तो उत्तम भोजन का भुगतान करता है परन्तु ठेके के कैटरिंग की उस हिसाब से गुणवत्ता नहीं होती । लगनों के सीजन में मांग अधिक होने से लगभग सभी वस्तुओं में मिलावट चरम पर पहुंच जाती है ।

     कुमाउनी भाषी क्षेत्र होने के बावजूद  हल्द्वानी में लोग अब कुमाउनी भाषा से भी परहेज करने लगे हैं । डीजे में उत्तराखंडी गीतों की जगह फूहड़ गीत बजने लगे हैं जिनमें पूरा परिवार एकसाथ नाचता है । चिपका ले फेविकोल से, चिकनी चमेली, आंख मारे... आदि गीत डी जे में खूब शोर से बजते हैं जिनमें पूरा परिवार एकसाथ ठुमके लगाता है । पारिवारिक समारोहों में सब कमा रहे हैं परन्तु आयोजक देखादेखी मजबूरी में लुट रहा है । शराब- गुटखा- धूम्रपान -चरस-गांजा अपनी जड़ जमाये हुए हैं । कूड़ा और गंदगी का भी जहां -तहां  भरपूर दीदार होता है ।

     नगरवासियों को हल्द्वानी की यह गुहार सुननी ही होगी -

"संभालो इस नगर को
तुमसे हल्द्वानी कह रहा,
बचालो इस बाग को
क्यों जहर इसमें बह रहा,
आने न दो विष बाड़ को
तन-मन मेरा है जल रहा,
मत रहो बन तमाशबीन
अस्तित्व मेरा ढह रहा ।"

( इस बिरखांत (दर्द भरा लेख ) से इत्तफाक नहीं रखने वालों से अग्रिम क्षमा । हो सकता है कुछ क्षेत्रों में सबकुछ ठीकठाक हो और आप डी जे में उक्त गीतों का विरोध भी करते हों।)

पूरन चन्द्र काण्डपाल
13.06.2019

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