खरी खरी - 450 : 'भगवान की व्यथा' पर मेरे पारखी मित्रों की नजर
खरी खरी 448 ( 25 .06.2019 ) पर मेरे कई पारखी मित्रों की टिप्पणियां फेसबुक और व्हाट्सप पर आई । सभी का हार्दिक आभार । जिन पारखी मित्रों की टिप्पणियां मैं यहां शब्दशः उद्धृत कर रहा हूं वे है श्री के एस उजराडी जी और श्री बी सी जोशी जी ।
" सर आपकी बात एकदम सत्य। इसी अज्ञानता के चलते हिंदू धर्म सिमटता जा रहा है। जिनके घर में खाने को नहीं है, वे भी सरस्वती, विश्वकर्मा, गणेश, दुर्गा व काली मूर्ति विसर्जन कर रहे हैं । सारी रात फिल्मी धुन पर कानफोडू जागरण करते हैं । लंगडे जो थे हमको चलना सिखा रहे हैं, अंधे हमें शहर का रस्ता दिखा रहे हैं, दसवीं फेल बारहवीं को ट्यूशन पढा रहे हैं । तेरा मेरा मिलन कैसे हो जानी ? तेरी बांयी आंख काणी, मेरी दांयी आंख काणी ।" उजराडी जी का शब्द प्रकटीकरण का अपना अंदाज है परन्तु उन्होंने मेरे शब्दों को ही विस्तार दिया है । (आ. उजराडी जी )
ये उदगार हैं श्री बी सी जोशी जी के, "ये तस्वीर वाले भगवान नही हैं ,ये केवल चित्रकार की कल्पना मात्र है । ईश्वर तो अज्न्मा, निराकार , अलोकिक है । यदि सही मायने में उसको जानना है तो क्यों सत्यार्थ प्रकाश पढो । मै ये तो नही कहूंगा कि वो भी 100 % सही है लेकिन अन्ध भक्ति व अन्ध विश्वाश के लिये 75% सत्य है ।" (आ. जोशी जी )
अन्य पार्खियों और पसंदकारों के उदगार भी सिरोधार्य हैं जिन्हें सभी मित्र फेसबुक पर देख सकते हैं । सभी का स्नेह बरसते रहे ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
27.06.2019
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