खरी खरी - 438 : व्यथित पर्यावरण
(आज 5 जून पर्यावरण बचाओ दिवस )
कर प्रदूषित मेरा तन
तू कहां टिक पाएगा,
संभल जा मानव तेरा
अस्तित्व ही मिट जाएगा,
बर्बादी वह है तेरी
जिसे तरक्की कह रहा,
पर्यावरण की पर्त पर
कहर तू बरपा रहा ।
तूने मेरे पर्वतों को
खोद कर झुका दिया,
बर्फीली चोटियों को
हीन हिम से कर दिया,
दिनोदिन मेरे शिखर का
रूप बिखरने है लगा,
निहारने निराली छटा
जन तरसने है लगा ।
बन के दानव जंगलों को
रौंदता तू जा रहा,
फटती छाती को तू मेरी
कौंधता ही आ रहा,
काट वैन-कानन को तू
कंकरीट वैन बना रहा,
उखाड़ उपवनों को मेरे
ईंट तरु लगा रहा ।
चीर कर तूने मेरा
रंग हरित उड़ा दिया
कर अगिनत घाव तन पर
श्रृंगार है छुड़ा दिया ,
तरुस्थल को मेरे तूने
मरुस्थल बना दिया,
जल-जमीन-जंगल खजाना
सारा दोहन कर लिया ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
05.06.2019
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