Thursday 27 June 2019

Bhasha sikhalaaee pasthyakram : भाषा सिखलाई पाठ्यक्रम

खरी खरी -  451: भाषा सिखलाई पाठ्यक्रम

    अपनी  मातृभाषा सीखना बहुत अच्छी बात है । इस दौर में हमारी भाषा की बात तो हो रही है परन्तु कौन सुनता है ? हम सब अपनी -अपनी ढपली और अपना - अपना राग बजा रहे हैं । आजकल भाषा पढ़ाने की बात राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में कई लोग कर रहे हैं । यह कार्यक्रम वर्ष 2016 में पहली बार DPMI के सौजन्य से आरम्भ हुआ था जिसका यह चौथा वर्ष है ।  कुछ कक्षाओं के आयोजन के समाचार भी मिल रहे हैं और सोसल मीडिया में वीडियो क्लिप भी पोस्ट हो रहे हैं ।

     वर्ष 2016 में  कई लोगों ने पाठ्यक्रम की बात उठाई । क्या पढ़ाएं ?  कैसे पढाएं ?  तब हमने ( उत्तराखंड लोकभाषा साहित्य मंच दिल्ली की टीम )  पाठ्यक्रम हाथ से बना कर उपलब्ध भी कराए और तीन वर्ष तक लगातार हस्त लिखित पाठ्यक्रम बांटे गए । हमें एक पाठ्यक्रम की बहुत आवश्यकता थी । इसके लिए एक वर्ष में मैंने पाठ्यक्रम तैयार किया और उसे  2019 में पुस्तक का रूप दिया । कई शिक्षकों को यह पुस्तक मैंने कंप्लिमेंट में भेंट भी करी जिसकी खूब सराहना भी हुई । डॉ विनोद बछेती जी (निदेशक DPMI) को भी यह पुस्तक भेंट की गई । कुछ लोगों ने इस पुस्तक को खरीदा भी जिनकी संख्या बहुत कम है ।

      इस वर्ष कुछ लोग कह रहे हैं वे अपनी भाषाओं की क्लास ले रहे हैं । बिना पाठ्यक्रम के क्या पढ़ा रहे हैं ? जो मन करे सो तो पढ़ाना ठीक नहीं है । पुस्तक तो किसी संस्था ने मंगाई नहीं फिर कक्षा आयोजन कैसे हो रहा है ? शिक्षक और बच्चों के हाथ में किताब होगी तो तभी मातृभाषा की सिखलाई होगी । ₹ 120/-  की 104 पृष्ठ की पाठ्यक्रम की मेरी पुस्तक "हमरि भाषा हमरि पछ्याण " 33% छूट के बाद मात्र  ₹ 80/- में मेरे पास उपलब्ध है (मोब 9871388815 ) ।  एक कक्षा में "चैत की चैतवाल " का एक वीडियो देखा जिसे बच्चे गा रहे थे । यह तो भाषा का पाठ्यक्रम नहीं है । बच्चों के समय का सदुपयोग भाषा सिखाने में होना चाहिए । कृपया पाठ्यक्रम के अनुसार पढ़ाने का कष्ट करें ताकि आपकी मेहनत सफल हो और बच्चों को हमारी मातृभाषा का सही ज्ञान भी मिले । जो भी मित्र इस अभियान से जुड़े हैं उनका हार्दिक आभार और  धन्यवाद ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
लेखक - पुस्तक "हमरि  भाषा हमरि  पछ्याण"
28.06.2019

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