Tuesday 11 June 2019

Apriy shabd badalein : अप्रिय शब्द बदलें

खरी खरी - 441 : अप्रिय शब्द बदलें 

        हमारे समाज में चिरकाल से गणेश जी की एक आरती प्रचलन में है, "जय गणेश जय गणेश श्रीगणेश देवा..."। इस आरती की इन पंक्तियों में बदलाव होना चाहिए -

" अंधन को आंख देत, कोडिन को काया;
    बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।"

आरती में तीन शब्द अप्रिय हैं, कलुषित हैं  और अप्रासंगिक हैं ।

          मेरे विचार से आरती इस प्रकार से हो -

" सूरन को आंख देत, रोगिन को काया;
   नारी को मातृत्व देत, सबजन को छाया ।" 

      अंधे व्यक्ति को सूर कहते हैं, सूर कहना उचित है ।   कोड़ की बात न हो, कोड़ रोग का भी उपचार होता है । प्रत्येक रोग से सभी को दूर रखने की बात हो । बांझ शब्द किसी भी विवाहिता के लिए कटु शब्द है । यहां मातृत्व की बात करें  ।  पुत्र देत न कहें । पुत्र देत कहने से हम अपनी पुत्रियों का अपमान करते हैं । माया तो मांगनी ही नहीं चाहिए । कर्म करें, उच्च चरित्र रखें, जीओ और जीने दो का सिद्धांत अपनाएं और स्वस्थ जीवन जीएं । जिस ' छाया ' शब्द  का मैंने प्रयोग किया है उसका अर्थ है भगवान की छत्र छाया सब पर बनी रहे । मुझे उम्मीद है सभी मित्र इस बदलाव पर अवश्य मंथन करेंगे और इन तीन शब्दों ( अंधन, कोडिन  और बांझ  ) से आहत होने वाले व्यक्तियों को इन अप्रिय शब्दों से बचाएंगे तथा इनकी जगह ' सूर '  'रोगिन ' और 'मातृत्व ' शब्द प्रयोग करेंगे । इस आशय में एक ऑडियो भी पहले प्रेषित किया है ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
12.06.2019

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