खरी खरी - 447 : जिंदगी क हाल (3,आंखिरी किश्त )
जिन्दगी उकाव
जिन्दगी होराव
कभैं अन्यार औंछ यैमें
कभैं छ उज्याव ।
कैहूणी किरमाडू छ यौ
कैहूणी कांफोव,
कैहूणी बगिच कैहूणी
घनघोर जंगोव ।
कैहूणी धान कि बालड़ि
कैहूणी पराव ।
जिन्दगी...
कैहूणी छ झोल यैमें
कैहूणी गुलाल,
क्वे उडूँ रौ मुफत की
कैक हूं रौ हलाल ।
क्वे मानछ धान ख़्वारम
क्वे लगूं दन्याव ।
जिन्दगी...
उकाव -होराव मजी
सब छीं रिटनै,
कैं दगड़ी मिलि जानी
हिटनै - हिटनै ।
जै पर यकीन करौ
वील करौ छलाव ।
जिन्दगी...
के तू यां लि बेर आछै
के तू यां बै लि जलै
के ट्वील यां कमा
सब यां ई छोडि जलै।
तेरि नेकी बदी कौ
रै जालौ लिखाव ।
जिंदगी...
पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.06.2019
(कविता निमड़िगे)
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