खरी खरी - 446 :जिंदगी के हाल (2)
जिन्दगी उकाव
जिन्दगी होराव
कभैं अन्यार औंछ यैमें
कभैं छ उज्याव ।
जिन्दगी क म्यल मजी
मैंस कसा कसा,
गिरगिट जौस रंग देखूनी
आँसु मगर जसा ।
कैं भुकणी कुकुर यैमें
कैं घुरघुरू बिराउ ।
जिन्दगी...
जिन्दगी में औनै रनी
रस कसा कसा,
कैं कड़ुवा नीम करयाला
कैं मिठ बत्यासा ।
कैं खट्ट अंगूर यैमें
कैं मिठ हिसाउ ।
जिन्दगी...
कैहुणी नागफणी यैमें
कैहुणी क्वैराव,
कैहुणी लंगण छीं यां
कैहुणी रैंसाव ।
कैहुणी यौ मिठी शलगम
कैं क्वकैल पिनाउ ।
जिन्दगी...
(क्रमशः -3,अंतिम)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
23.06.2019
No comments:
Post a Comment