खरी खरी - 452 : 'भगवान की व्यथा' पर मेरे कुछ और पारखी मित्रों की नजर
खरी खरी 448 ( 25 .06.2019 ) पर मेरे कई पारखी मित्रों की टिप्पणियां फेसबुक और व्हाट्सप पर आई । सभी का हार्दिक आभार । जिन पारखी मित्रों की टिप्पणियां मैं आज यहां शब्दशः उद्धृत कर रहा हूं वे है सर्वश्री नंदन मेहता जी, रमेश चंद्र बहुगुणा जी और डॉ हेमा उनियाल जी । कल श्री के एस उजराडी जी और श्री बी सी तिवारी जी की टिप्पणियां यहां पोस्ट की थी।
"राम सिन्धु घन सजन धीरा
चन्दन तरू हरि सन्त समीरा।
चित्र या मूर्ति पूजा एक पर्तीक के स्वरूप मे है उस सर्ब शक्ति के पर्ति एक श्रधावान मनुष्य की कृतग्यता पर्कट करने का ना फसीम भक्तिभाव है स्वामी विवेकन्द जी ने कहा है मूर्ति पूजा का महत्व केवल ईश्र्वर पर ध्यान केन्दरित करने तक ही है यह पर्थम स्थर की भक्ति है इसके उपरान्त जब ध्यान गहरा होते जाता है तब किसी पर्तीक की आवश्यकता नही रहती। आधुनिक जीवन शैली मे मार्केट वाजार ने अपना विशेष पर्भाव डाला है इसमें भक्त और भक्ति का अछूता रहना अशम्भव है। भगवान हर युग मे गणौ का गुणों मे पर्तिविम्ब का एहसहास मात्र है और निराकार शब्दातीत भगवान के पृकटीकरण के लिए सादर नमन।" ( आ.मेहता जी )
"जी, देवी-देवताओं की जैसी और जितनी दुर्गति हमारे देश में होती है दुनिया में और कहीं नहीं। देवी-देवताओं के प्रति तक हम न संवेदनशील हैं और न अनुशासित। धार्मिक गुरुओं, कथावाचकों और प्रवचन देने वालों की इस देश में कमी नहीं जिनके प्रयास इस दिशा में होने चाहिए पर भगवान् की जिस वेदना को आपने व्यक्त किया है उसका इन्हें सपने में भी भान नहीं !! बहुत दुखद।"। ( आ. बहुगुणा जी)
"ईश्वर की बात ईश्वर को भी माध्यम बनाकर बहुत सच्चाई से आपने कही है।ईश्वर हर कण- कण में है, स्वयं आत्मा में है उसे आडंबरों से दूर रखना ही फायदेमंद।चित्रों से अच्छा तो धातु निर्मित मूर्तियां ही हैं जो आजीवन चलेंगी और इस प्रकार गलत प्रयोग भी नहीं होगा।" ( आ. डॉ हेमा उनियाल जी)
अन्य पारखियों और पसंदकारों के उदगार भी सिरोधार्य हैं जिन्हें सभी मित्र फेसबुक पर देख सकते हैं । सभी का स्नेह बरसते रहे ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
29.06.2019
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