खरी खरी - 942 : ये कैसे लंगर ?
बताया जाता है कि गुरु नानक देव जी ने सबसे पहले लंगर की प्रथा आरम्भ की। लंगर अर्थात गरीबों या आपातकाल में घिरे लोगों को मुफ्त भोजन उपलब्ध करना । वर्ष 1982 में मैं अमरनाथ यात्रा पर गया। पंचतरणी से पहले कुछ लोगों ने लंगर व्यवस्था की थी। दुर्गम मार्ग होने के कारण ( बालटाल रास्ते से) वहां राशन लेजाना भी कठिन था। फिर भी लंगर चल रहा था। लंगर खाने के बाद जब मैं थाली धोने लगा तो उन्होंने मेरे हाथ से थाली खींचते हुए कहा, " महाराज आपने यहां पर लंगर छक कर हम पर कृपा की है, आपका आभार ।" उनका सेवा भाव देख कर दंग रह गया। ऐसा वे सभी यात्रियों के लिए कर रहे थे।
आजकल शहरों में कई जगह ( नवरात्रि में) लंगर लगते हैं। लंगर अक्सर उस घर या गली के आगे सड़क पर लगते हैं जहां लंगर आयोजक का घर होता है या फिर मेन रोड पर लगते हैं। यहां लंगर छकने वाला कोई गरीब नहीं होता। लोग अपने वाहनों में आते हैं, डिस्पोजेबल प्लेट में आलू - पूरी - हलवा खाते हैं और कहीं भी प्लेट -दोने - गिलास फैंकते हुए चल पड़ते हैं। गली - मुहल्ले में प्रचार हो जाता है कि अमुक व्यक्ति ने लंगर/ भंडारा लगाया था । यहां सेवा भाव नहीं होता बल्कि अपनों का ख्याल होता है। इक्का - दुक्का गरीब को तिरस्कार की दृष्टि से देखा जाता है या ये दोबारा आया है कह कर भगाया जाता है।
यहां नानक साहब की कोई मर्यादा नहीं होती बल्कि अपने रुतबे का प्रदर्शन होता है। लंगर/भंडारा उचित तब होता जब ये लोग उस स्थान पर लंगर व्यवस्था करते जहां गरीबों की बस्ती है या जहां झुग्गी - झोपड़ी में लोग रहते हैं। ऐसी जगहों पर इस महंगाई में आलू- पूरी एक महाभोज जैसा है। देश के प्रत्येक शहर में ऐसे कई स्थान हैं जहां गरीब जैसे तैसे गुजारा करते हैं और उन्हें आलू - पूरी नसीब नहीं होती । हमारा अभिप्राय किसी के लंगर की आलोचना नहीं है बल्कि नानक साहब की लंगर मर्यादा पर चलने का अनुरोध है। लंगर आयोजकों को लंगर के बाद उस स्थान को स्वच्छ भी करना चाहिए जहां कई दिन तक ईट का चूल्हा, राख और दोने - पत्तल - गिलास पड़े रहते हैं। स्वच्छ भारत के नारे लगाने से ही स्वच्छता नहीं होगी बल्कि हम सबको भारत की स्वच्छता का भी ध्यान रखना होगा । अपना भारत, स्वच्छ भारत।
पूरन चन्द्र कांडपाल
13.10.2021
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