स्मृति - 655 : बेमिसाल थे एपीजे अब्दुल कलाम - आज जयंती
देश के पूर्व राष्ट्रपति, भारत रत्न,मिज़ाइल मैन ए पी जे (अबुल पाकिर जैनुलाब्दीन) अब्दुल कलाम का जन्म 15.10.1931 को धनुषकोटि तमिलनाडु में और निधन शिलांग में 27.07.2015 को हुआ । वे 84 वर्ष तक जीवित रहे और अंतिम क्षण तक पढ़ाते रहे । वे एक विख्यात व्याख्याता थे । उन्होंने बच्चों से लेकर बड़ों को भी पढ़ाया । बच्चे उन्हें प्यार से कलाम अंकल कहते थे ।
जब मैंने 2002 में "ये निराले" पुस्तक लिखी तब कलाम साहब राष्ट्रपति नहीं थे । पुस्तक में उन पर "मिज़ाइल मैन" के नाम से चर्चा है । वे 25.07.2002 को राष्ट्रपति बने । मैंने कोरियर द्वारा उन्हें राष्ट्रपति भवन में "ये निराले" पुस्तक भेजी । पुस्तक प्राप्ति पर कलाम साहब ने मुझे धन्यवाद के साथ पावती भिजवाई और पुस्तक को राष्ट्रपति भवन पुस्तकालय में रखवा दिया गया है, यह सूचना भी भिजवाई। इस पुस्तक में 11 निराले व्यक्तियों की चर्चा है जिनमें एपीजे भी एक हैं ।
कलाम साहब अविवाहित ही रहे । व्यस्तता के कारण समय से निकाह पर नहीं पहुंच सके और उसके बाद निकाह की घड़ी जीवन में फिर नहीं आई, अविवाहित ही रह गए । जब वे राष्ट्रपति भवन पहुंचे तो एक अटैची और कुछ पुस्तकें उनके साथ थी । 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा करने के बाद वे इतने ही सामान के साथ वापस लौट गए । वे बहुत ही सादगी प्रिय महामानव थे । उनसे जुड़ी कुछ बातें प्रस्तुत हैं ।
एक बार कलाम साहब के 50- 60 रिश्तेदार उनसे मिलने राष्ट्रपति भवन आए । उनके आने- जाने और रहने - खाने का सारा खर्च कलाम साहब ने अपनी जेब से दिया । उन्होंने इन मेहमानों के लिए सरकारी वाहन भी प्रयोग नहीं होने दिए । एक सप्ताह बाद जब उनके रिश्तेदार चले गए तो उन्होंने अपने निजी खाते से इस सारी व्यवस्था के खर्च का 3 लाख 54 हजार 924 रुपये का भुगतान किया जबकि उनके मेहमानों की व्यवस्था सरकारी खर्च पर भी हो सकती थी । सार्वजनिक जीवन में इस तरह के उदाहरण भारत में बहुत कम देखने- सुनने को मिलते हैं ।
राष्ट्रपति बनने के बाद जब वे पहली बार केरल पहुंचे तो वहां उनके ठहरने का प्रबंध राजनिवास में था । वहां उनके पास आने वाला सबसे पहला मेहमान सड़क पर बैठने वाला एक मोची और एक छोटे से होटल का मालिक था । इस मोची ने कई बार कलाम साहब के जूते मरम्मत किये थे और उस छोटे से होटल में कलाम साहब ने कई बार खाना खाया था ।
बहुत कुछ है उनके बारे में जानने के लिए । ऐसे महामानव को भूल कर भी भुलाया नहीं जा सकता । मेरी एक अन्य पुस्तक "महामनखी" में भी उनकी चर्चा है । ऐसे कालजयी मनीषी को आज उनकी पुण्यतिथि पर शत - शत प्रणाम और विनम्र श्रद्धांजलि
पूरन चन्द्र काण्डपाल
15.10.2021
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