Monday 4 October 2021

Ek thee Kaikei : एक थी कैकेई

खरी खरी - 938 : एक थी कैकई 

     रघुवंश के राजा अयोध्या नरेश दशरथ का पत्नी कैकई से गहन प्रेम अवर्णनीय है । पत्नी का साथ और पत्नी का प्रेम देख कर उसे दो वरदान दे दिये । कैकई बोली, "जब मन करेगा मांग लूंगी राजन, आप बचन दे दो ।'' अपनी प्रियतमा पर भरोसा था सो महाराज दशरथ ने बचन दे दिया । भरोसा करना भी पड़ता है । उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि इस बचन की परिणीति क्या होगी ?

     आगे चलकर राम राज्याभिषेक का वक्त आया और पुत्र प्रेम में डूबी कैकई जी को उनकी परमानेंट कामवाली (आजकल मेड कह रहे हैं ) मंथरा जी ने ऐसा उकसाया कि कैकई ने अपने सर्वप्रिय कौशल्या पुत्र राम को वनवास और अपने पुत्र भरत को राजा बनाने की मांग कर डाली । दशरथ बोले, "प्यारी कैकई, मेरे प्यार के साथ विश्वासघात मत कर । मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि तू इतनी भयानक हो सकती है । अब मेरी विनती है कि भरत को भलेही राजा बना दे परन्तु निर्दोष राम को वन मत भेज ।"

         कैकई नहीं मानी, वह अपनी मांग पर अड़ी रही ।  राजा दशरथ को ऐसा सदमा लगा कि वे कौमा में चले गए और कौमा से कभी वापस नहीं आये । तत्काल उनके प्राण पखेरू उड़ गए । वे चार पुत्रों के पिता थे परन्तु मृत्यु के समय कोई भी पुत्र सामने नहीं था । कैकई की निष्ठुरता इतनी उग्र हो गई कि मरते हुए पति को देखकर भी उसका हृदय नहीं पिघला । उसकी जिद दुनिया को कुछ तो शिक्षा दे गई ।  (आगे की कहानी सब जानते हैं फिर भी मौका मिले तो रामलीला देखते रहिए ।)

      यदि कैकई चाहती तो दशरथ बच सकते थे । भरत राजा भी बन जाते और राम वन भी नहीं जाते लेकिन वह नहीं मानी । यदि दशरथ यह जानते कि कैकई इस तरह की हरकत करेगी तो वे उसे बचन नहीं देते । यह त्रेता युग की बात है । सभी विवाहित पुरुषों से निवेदन है कि अपनी पत्नी को बचन भी दें, उसको ATM का पिन नम्बर भी बतायें और उसे दशरथ से ज्यादा प्यार भी करें परन्तु उसे प्यार से या मजाक में भी कैकई न कहें, वह बुरा मान सकती है । कैकई तो सिर्फ और सिर्फ एक ही थी ।  लेकिन यह घ्यान जरूर रखें कि आपकी पत्नी के संपर्क में दूर- दूर तक ब्रेन वाश करने वाली कोई मंथरा न मंडराने पाए ।

(कृपया कथानक को पौराणिक दृष्टि से नहीं, केवल साहित्यिक और सामाजिक दृष्टि से देखें । धन्यवाद ।)

पूरन चन्द्र काण्डपाल


05.10.2021

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