Sunday 3 October 2021

Kali raat : काली रात

खरी खरी - 937 :  1 और 2 अक्टूबर की वह दरम्यानी काली रात !!

      1 और 2अक्टूबर 1994 की उस दरम्यानी रात  को जब उत्तराखंड से हमारी बहनें राज्य की मांग के लिए अहिंसक आंदोलन करने दिल्ली की गद्दी को चेताने के लिए बसों से आ रही थी तो उन्होंने सोचा भी नहीं होगा की कंस के राक्षस 2 अक्टूबर की भोर को रामपुर तिराहे पर बांगोवाली गांव के पास उनका अपमान करेंगे । उनके हाथ में उस दिन दराती भी नहीं थी अन्यथा उन नरपिशाचों के चिथड़े उड़ गए होते । उन्हें पहली बार कमर में दराती नहीं होने की कमी खली । 

    इसी तरह 1994 के राज्य आंदोलन में 42 उत्तराखंडी शहीद हो गए । इन लोगों ने आंदोलन में कूदते समय यह नहीं सोचा होगा कि आज वे शहीद हो जॉयेंगे । इनकी वीरगति से इनके घरों के दीपक बुझ गए । इनका आंदोलन भी अहिंसक था ।सोचिए क्या बीती होगी इन शहीदों के परिवारों पर । अपने लिए नहीं मरे थे ये । ये उत्तराखंड राज्य के लिए मरे ।  ये गैरसैण राजधानी के लिए शहीद हुए । इनकी जीवटता को नमन ।

        1- 2 अक्टूबर की उस काली रात को  उत्तराखंड के लिए भुलाना मुश्किल है । भूलेगा भी नहीं क्योंकि दोनों ही घटनाएं दुःखद, शर्मनाक और निंदनीय थीं । यह दिन उत्तराखंड के लिए हमेशा ही काला रहेगा क्योंकि उस रात महिलाओं के उस निरादर ने पूरे विश्व को अपनी ओर आकृष्ट किया था ।  इस दिन कुछ लोग घड़ियाली आंसू बहाते हैं जो जनता के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है । सत्ता - सुख भोग रहे मान्यवरों को उत्तराखंड को न्याय दिलाना चाहिए । 27 वर्ष हो गए हैं, एक भी दोषी दंडित नहीं हुआ । क्यों ? यदि आप आत्मा में विश्वास रखतें हैं तो उन 42 शहीदों की आत्मा के बारे में भी सोचो । देश की 2 महान हस्तियों, गांधी -शास्त्री को 2 अक्टूबर को विनम्र श्रद्धांजलि के अलावा उत्तराखंड के लिए यह दिन काला दिवस के रूप में ही याद किया जाता है । "वैष्णव जन तो तेने कहिए... 'सबको सन्मति दे भगवान...."


पूरन चन्द्र काण्डपाल

04.10.2021


No comments:

Post a Comment