Saturday 22 May 2021

Sunder lal Bahuguna : सुंदरलाल बहुगुणा

मीठी मीठी - 597 : पर्यावरण गांधी सुंदरलाल बहुगुणा


      वर्ष 2002 में मैंने ' ये निराले ' पुस्तक लिखी थी । इस किताब में निराले व्यक्तित्व के धनी 11 विभूतियां हैं जिनमें उत्तराखंड से प्रकृति प्रेमी सुंदरलाल बहुगुणा हैं । अन्य 10 देश के विभिन्न क्षेत्रों के महामानव हैं।  यह पुस्तक आज से 20 वर्ष पूर्व लिखी गई तब बहुगुणा जी प्रकृति को बचाने के अपने कार्य को बड़ी तत्परता से निभा रहे थे। । 

          ' ये निराले ' में बहुगुणा जी के बारे में  लिखे गए विस्तृत लेख के कुछ अंश आज उन्हें श्रद्धांजलि स्वरूप अर्पित कर रहा हूं। बहुगुणा जी का जन्म 9 जनवरी 1927 को टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड में हुआ । वे शुद्ध चित से परमार्थ करने वाले, निष्कपट भाव से सबका भला चाहने वाले, प्राकृतिक संपदा के पुजारी तथा मानव के हितार्थ दूरदृष्टि रखने वाले एक भद्र पुरुष थे।  उनका कहना था, " हिमालय हमारे लिए प्रकृति की एक अमूल्य एवं अद्वितीय देन है। हमारा देश सौभाग्यशाली है क्योंकि उसके सिर पर मुकुट के रूप में हिमालय विराजमान है । इस पर्वतराज हिमालय से निकलकर जीवनदायिनी नदिया वर्ष भर निर्मल जल की धार लिए अविरल बहती रहती हैं । हमारे देश के उत्तर में एक सजग प्रहरी की तरह अविचल खड़ा यह नगेश हमारी सीमाओं को सुरक्षित और अभेद्य बनाए हुए है ।"

     पर्यावरण विज्ञानी सुंदरलाल बहुगुणा जी को यह सुनिश्चित जान पड़ा कि जंगलों का विनाश नीति - निर्माताओं के आगे हाथ जोड़ने और गिड़गिड़ाने से रुकने वाला नहीं है । उन्होंने इसके लिए जनजागृति करना उचित समझा और ' चिपको ' आंदोलन को एक हथियार बनाया। ' चिपको ' अर्थात कोई किसी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी उठाए तो उस वृक्ष का आलिंगन कर उस पर चिपक जाओ जिसे कुमाउनी भाषा में 'अंगवाव किटना ' कहते हैं ।

उनका कहना था पेड़ काटने से पहले हमें काटो । इस आंदोलन को रैण की गौरा देवी ने महिलाओं तक पहुंचाया फल स्वरूप जंगलों का कटान रुक गया । 

     जंगल कटान थमने के बाद बहुगुणा जी ने वैज्ञानिकों तथा नीति निर्माताओं का ध्यान बड़े बांध बनाने से होने वाली अपूरणीय क्षति की ओर आकर्षित करना चाहा । उन्होंने विश्व में आठवें और एशिया में प्रथम 260.8 मीटर ऊंचे मध्य हिमालय में भागीरथी नदी (गंगा का ही नाम) पर बनने वाले टिहरी बांध से होने वाली क्षति के बारे में वैज्ञानिकों, नीति नियंताओं सहित समाज के विभिन्न वर्ग को चेताया। वे कहते थे इस भूकंपीय क्षेत्र में बड़े बांध नहीं बनने चाहिए।  वर्ष 1998 में इस क्षेत्र में 6.9 रिकतार रिक्टर स्केल का भूकंप आया जो जान - माल की बहुत हानि कर गया । अन्य कई कारणों से भी बांध को क्षति पहुंचने पर मानव हानि होगी । बड़े बांधों से प्रकृतिजन्य अपार जैव संपदा, दुर्लभ पुष्प, वनस्पतियां, अलौकिक सौंदर्य, सांस्कृतिक विरासत, इतिहास, परंपराएं, स्मारक आदि सब उजड़ जाएंगे । 

      बहुगुणा जी ने जून 1996 में टिहरी बांध निर्माण रुकवाने के लिए 84 दिन का अनशन किया । 2 अक्टूबर 1997 से 19 नवम्बर 1997  तक 49 दिन तक भी उन्होंने अनशन किया और वे जेल भी गए । 1971 में उन्होंने 16 दिन का अनशन शराब के विरोध में किया । वे महत्मा गांधी की राह पर विनम्रता से अनशन के पक्षधर थे । वे जंगल कटान विरोध के साथ ही लक्जरी टूरिज्म और अंधाधुंध खनन के विरोधी थे । सड़क किनारे मलवे का ढेर उन्हें दुखी करते थे । कृषि, बागवानी, पशुपालन, मौनपालन तथा लघु ग्रामोद्योग के पक्षधर बहुगुणा जी सामाजिक सौहार्द और सर्व धर्म समभाव के पैरोकार थे ।  वर्ष 1991 में उन्होंने गंगासागर से गंगोत्री तक हिमालय रक्षार्थ जन - जागृति के उद्देश्य से 56 दिन की साइकिल यात्रा की । परिश्रम और साधना से तप्त  बहुगुणा जी को कई सम्मान भी दिए गए जिनमें पद्मविभूषण और सतपाल मित्तल स्मृति सम्मान प्रमुख हैं । दुनिया से विदा लेने के कुछ वर्ष पूर्व वे दिल्ली स्थित गांधी स्मृति संस्थान राजघाट पर आए। अचानक समय बदलाव के कारण उनसे मिल नहीं सका । मेरी भेजी हुई पुस्तक प्राप्ति की रसीद भी मुझे डाक से प्राप्त हुई ।   21 मई 2021 को ऋषिकेश ऐम्स ( उत्तराखंड ) में कोरोना संक्रमण से उनका निधन हुआ । ऐसे प्रकृति पुरुष कभी मरते नहीं हैं । पर्यावरण गांधी सुंदरलाल बहुगुणा हमारे बीच हमेशा जिंदा रहेंगे । विनम्र श्रद्धांजलि । 

पूरन चन्द्र कांडपाल

23.05.2021

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