Sunday 16 May 2021

Ek akela is ped mein : एक अकेला इस पेड़ में

मीठी मीठी - 593 : एक अकेला इस पेड़ में

     मित्रो आपने सुना होगा कि पेड़ कोई लगाता है और फल कोई खाता है। आज से करीब 12 वर्ष पहले मैंने अपने निवास के सरकारी पार्क ( जो एक कूड़ादान बन चुका था ) में कुछ पौधे लगाए। इन पौधों में कुछ पौधे आम, पपीता, नीम, बेलपत्र, केला, फाईकस और अशोका के थे। समय बीता और कुछ पौधे बड़े हुए कुछ लोगों ने नष्ट कर दिए। पिछले डेंगू सीजन में लोगों ने पपीते के पत्तों के साथ सभी पेड़ भी तोड़ दिए। बेलपत्र का पेड़ पूजा करने वालों की भेंट चढ़ गया । आम की कहानी पेड़ पर बचे हुए एकमात्र अकेले आम की जुबानी सुनो।  

        " जी मैं आम के तीन पेड़ों में से एक पेड़ पर एक अकेला बचा हुआ आम बोल रहा हूं। मैं अकेला नहीं था, मेरे साथ बहुत आम थे परन्तु जैसे ही हम बेर के दाने के बराबर हुए हमें राहगीरों ने, पार्क में आने वालों ने तथा अज्ञात बच्चों ने लाठी -पत्थर मार कर झाड़ दिया। मुझे बहुत दुख हुआ। जिस पेड़ पर मेरा जीवन है उसकी कई टहनियां भी तोड़ दीं।  क्योंकि मैं पत्थर खाने से बच गया और इसलिए अब थोड़ा बड़ा हो गया हूं। आज भी आते जाते लोग मेरी ओर देखते हैं और मुझे तोड़ने की जुगत लगाते हैं, कई पत्थर मारते हैं परन्तु असफल होकर चले जाते हैं। यह सब मेरे पेड़ को रोपने वाला व्यक्ति अपने निवास की खिड़की से यदा कदा देखते रहता है ।"

       "मुझे तोड़ने की कई जुगत लगाते हैं लोग । एक दिन एक जुगत ऐसी लगी कि मैं सोचने लगा कि आज तो मेरी छुट्टी हो ही जाएगी । हुआ यह कि एक बूढ़ी महिला ने मेरी ओर देखा और मुझे तोड़ने की योजना बनाई । वह महिला अपने घर गई और एक बांस की सीढ़ी, एक लंबा डंडा, एक दरातीनुमा औजार तथा एक रस्सी के साथ अपनी बहू को लेकर मेरे पेड़ के नीचे आईं । दोनों सास - बहू ने डंडे पर रस्सी की मदद से दराती बांधी । बगल के एक अन्य पेड़ पर इन्होंने सीढ़ी खड़ी करी और सास ने बहू से सीढ़ी पर चढ़ने को कहा । बहू डर गई और वह नहीं चढ़ी । फिर सास को झनक उठी और वह दराती बंधा डंडा लेकर सीढ़ी में चढ़ गई । सीढ़ी से उसने कई प्रयास किए परन्तु दराती मुझ तक नहीं पहुंची । इतने में वह महिला सीढ़ी के ऊपरी डंडे पर चढ़ कर ज्योंहि मुझ पर प्रहार करने लगी वह धड़ाम से नीचे गिर गई । मैं और मेरे पेड़ को रोपने वाला व्यक्ति इस दृश्य को देखकर एकबारगी स्तब्ध हुए कि कहीं इस महिला की टांग न टूट गई हो । थोड़ी देर में बहू ने सास को पकड़ कर खड़ा किया और सीढ़ी, डंडा, दराती सहित सास का हाथ पकड़ कर घर को चली गई । सास की निराश खीज भरी बड़बड़ाने की आवाज मुझे सुनाई दे रही थी । "

         "मेरा वजन अब मुश्किल से 100 ग्राम होगा । मैं सोच रहा था कि मेरे लिए इन सास - बहू ने इतना बड़ा जोखिम क्यों उठाया होगा ? 100 ग्राम का एक इस तरह का आम तो पांच रुपए में आ जाता । शायद मुफ्त प्राप्ति की चाह के लिए लोग कुछ भी करने का जोखिम उठा लेते हैं ।  दूर खिड़की पर बैठा बैठा इस आम के पेड़ को रोपने वाला व्यक्ति भी ऐसा ही सोच रहा था जिसने शुरू में मुझपर लाठी - पत्थर मारने वालों को रोकना चाहा परन्तु उसके लिए हर समय इस पेड़ पर नजर रखना मुमकिन नहीं था । मैं आज भी अपनी जगह लटका हूं और अपने पेड़ से खूब आक्सीजन ले रहा हूं जबकि देश में कई लोग आज इस कोरोना काल में आक्सीजन के बिना दम घुट कर मर रहे हैं । मेरा पेड़ इस क्षेत्र को बहुत आक्सीजन दे रहा है । आज भी कई आने जाने वाले मेरी ओर बड़ी टकटकी लगाकर ताकते हैं और कुछ बड़बड़ाते हुए चले जाते हैं । मैं तो फल हूं । एक न एक दिन कोई तो मुझे तोड़कर खाएगा ही । मैं दुआ कर रहा हूं कि मेरी वजह से किसी की टांग न टूटे, किसी का सिर न फूटे । यदि मैं कुछ दिन इस पेड़ पर टिक कर पक गया तो इस पार्क में आने वाले तोते जरूर मेरे मिठास का आंनद लेंगे ही । उन बेचारों का भी तो मुझ पर हक है । मेरे बारे में सही कहावत है कि आम के पेड़ कोई लगाता है और फल कोई खाता है ।"

पूरन चन्द्र कांडपाल


17.05.2021


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